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________________ मारवाड़ का इतिहास हो गया । यद्यपि सरदारों ने हर तरह से अपने स्वामी का समाधान करने की चेष्टा की, तथापि उनका संदेह निवृत्त न होसका और यह रात्रि में ही पीछे लौट पड़े यह देख इनके जैता, कँपायादि कई सरदारों ने गिररी ( जैतारण परगने के गाँव ) से पीछे हटने से इनकार कर दिया । उन्होंने निवेदन किया कि इसके आगे का प्रदेश तो स्वयं आपने ही विजय किया था, इसलिये यदि उसे छोड़ दिया जाय, तो हमें कोई आपत्ति नहीं होसकती । परन्तु यहाँ से पीछे का देश आपके और हमारे पूर्वजों का विजय किया हुआ है, इसलिये यहाँ से हटना हमें किसी प्रकार भी अंगीकार नहीं हो सकता । इस पर भी मालदेवजी का उनके कहने पर विश्वास नहीं हुआ और ये जोधपुर की तरफ़ रवाना हो गए । यह देख जैता, कँपा आदि कुछ सरदार १२,००० सवारों के साथ पलट पड़े और रात्रि के अंधकार में ही शेरशाह की सेना पर हमला कर देने को रवाना हुए । परन्तु भाग्य की कुटिलता से ये लोग अंधकार में मार्ग भूल गए, अतः प्रातःकाल के समय इनमें से आधे के क़रीब योद्धा सुमेल के पास शेरशाह के मुक़ाबले पर पहुँचे । यद्यपि ऐसे समय ६,००० राजपूत सैनिकों' का ८०,००० पठान सैनिकों से भिड़ जाना बिलकुल ही अनुचित था, तथापि वीर राठोड़ों ने इसकी कुछ भी परवा नहीं की और अपनी मर्यादा की रक्षा के लिये शत्रुसेना में घुसकर वह तलवार बजाई कि एक बार तो पठानों के पैर ही उखड़ गए । शेरशाह भी अपनी इस पराजय से दुखित हो भागने को तैयार हो गया । परन्तु इतने ही में उसका एक सरदार जलालख़ाँ जलवानी एक बड़ी और ताजादम फौज लेकर वहाँ आ पहुँचा | राठोड़ सरदार तो पहले से ही संख्या में अल्प थे और अब तक के युद्ध में उनकी संख्या और भी अल्पतर हो चुकी थी । इससे पासा पलट गया । सारे-के-सारे राठोड़ योद्धा अपने देश और मान की रक्षा के लिये सम्मुख रण 1 कहीं-कहीं पत्रों के साथ ही सामान खरीदने के बहाने रावजी की सेना में फ़ीरोज़ी सिक्कों के भिजवा देने का भी उल्लेख मिलता है । १. ‘तबकाते अकबरी' में २०,००० सैनिक लिखे हैं । परंतु उसमें यह भी लिखा है कि इन बीस हज़ार सवारों में से रात में रास्ता भूल जाने के कारण सिर्फ़ ५ या ६ हजार सवार शेरशाह की सेना के क़रीब पहुँचे । बड़ी घमसान लड़ाई हुई। यहां तक कि राजपूत घोड़ों से उतरकर शेरशाह की फ़ौज से चिमट गए और कटार तथा जमधर से ख़ूब लड़े । परंतु शेरशाही फौज बहुत ज़्यादा थी। इसी से उसने चारों ओर से घेरकर बहुत से राज - पूतों को मार डाला । इस फ़तेह के पीछे, जो शेरशाह की ताक़त से बाहर थी, वह (शेरशाह ) रणथंभोर की तरफ रवाना हुआ । - (देखो पृ० २३२ ) १३० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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