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________________ मिारवाड़ का इतिहास जिस समय महाराणा ने निजामुलमुल्क (मुबारिजुल मुल्क) को भगाकर ईडर का अधिकार फिर से राव रायमलजी को दिलवाया, उस समय भी राव गांगाजी ने ७,००० सवारों के साथ पहुँच उनका साथ दियो । वि० सं० १५८२ ( ई० सन् १५२५) में जब सिकंदरखाँ जालोर की गद्दी पर बैठा, तब गजनीखाँ ने राव गाँगाजी की सहायता प्राप्तकर जालोर पर चढाई की। परन्तु सिकंदरखाँ ने फ़ौज-खर्च के रुपये देकर जोधपुर की फौज को वापस लौटा दिया । ___ वि० सं० १५८३-८४ (ई० सन् १५२७) में जिस समय महाराना साँगाजी और बाबर के बीच युद्ध हुआ, उस समय भी इन्होंने ४,००० सैनिकों से महाराना की सहायता की थी'; परन्तु अनेक कारणों से इस युद्ध में सफलता न हो सकी। वि० सं० १५८५ (ई० सन् १५२६) में (रावजी के चचा ) शेखाने नागोर के शासक खाँजादा दौलतखाँ की सहायता से जोधपुर पर चढ़ाई की । जैसे ही इसकी १. किसी-किसी स्थान पर इस घटना का समय वि० सं० १५७६ (ई० स० १५१६) भी लिखा मिलता है। २. महाराना सांगा, पृ० ७६ । ३. तारीख पालनपुर, भा० १, पृ० ५६ । ४. कहीं-कहीं ३,००० सैनिक लिखे हैं। ५. इस युद्ध में (राव जोधाजी का पौत्र और राव दूदा का पुत्र) राव वीरम मी मड़ते से ४,००० सैनिक लेकर साँगाजी की सहायता को गया था। इसी में राव वीरम के भाई रायमल और रत्नसिंह बड़ी वीरता से लड़ कर मारे गए। ख्यातों में इन दोनों भाइयों (रायमल और रत्नसिंह) का राव गाँगाजी की सेना के साथ मेवाड़ जाना लिखा है। कर्नल टॉड ने रायमल को मारवाड़ का राजकुमार (गाँगाजी का पौत्र) लिखा है (ऐनाल्स ऐंड ऐन्टिक्विटीज़ ऑफ राजस्थान, भा० १, पृ० ३५७ और भा० २, पृ०६५३)। इसी प्रकार श्रीयुत हरविलास सारडाने भी रायमल को एक स्थान पर जोधपुर का सेनापति और दूसरे स्थान पर राज्य का उत्तराधिकारी लिखा है (महाराना सांगा, पृ० १४४ और १४८) । परन्तु यह ठीक नहीं है । सम्भवतः दूसरे स्थान पर जिस रायमल का उल्लेख है, वह राव गाँगाजी का पौत्र और मालदेवजी का पुत्र रायमल हो । परन्तु जब स्वयं मालदेवजी का जन्म वि० सं० १५६८ (ई. सन् १५११) मे हुआ था, तब वि० सं० १५८३-८४ (ई० सन् १५२७) के युद्ध में उनके पुत्रका सम्मुख रण में लड़ कर मारा जाना असम्भव ही है। राव वीरम ने वि० सं० १५७४ (ई० सन् १५१७) की ईडर की चढ़ाई के समय मी महाराणा साँगाजी की सहायता की थी। ६. राजकुमार बाघाजी के इच्छानुसार उनके छोटे भाई शेखा ने अपना हक़ छोड़ अपने भतीजे (बाघाजी के ज्येष्ठ पुत्र ) वीरम को राज्य का उत्तराधिकारी बनाने की अनुमति दी थी। ११२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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