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________________ राव सुजाजी युद्ध में चाणोद के सींधलों ने भी रायपुर वालों का साथ दिया था। इसी का बदला लेने के लिये वि० सं० १५६० (ई० सन् १५०३ ) में उनपर सेना भेजी गई। पाँच दिन तक तो चाणोदवालों ने भी उसका सामना किया, परन्तु छठे दिन उनका सरदार सूजा स्वयं आकर रावजी की सेना में उपस्थित हो गया, और उनके साथ ही जोधपुर चला आया। यह देख राव सूजाजी ने चाणोद की जागीर उसे ही लौटा दी। राव सूजाजी के बड़े राजकुमार का नाम बाघाजी था । इनका जन्म वि० सं० १५१४ की वैशाखे बदी ३० (ई० सन् १४५७ की २३ अप्रेल ) को हुआ था। वि० सं० १५६७ (ई० सन् १५१०) में जिस समय महाराना सांगाजी ने सोजत पर अधिकार करने के लिये सेना भेजी, उस समय रावजी की आज्ञा से बाघाजी ने उसे मार्ग से ही मार भगाया । वि० सं० १५७१ की भादों सुदी १४ (ई० सन् १५१४ की ३ सितम्बर ) को, युवराज अवस्था में ही, बाघाजी का स्वर्गवास हो गया। इससे राव सूजाजी के स्वास्थ्य को बड़ा धक्का लगा, और वि० सं० १५७२ की कार्तिक बदी १ (ई० सन् १५१५ की २ अक्टोबर ) को ७६ वर्ष की अवस्था में, यह भी स्वर्ग को सिधार गएं। राव सूजाजी का अधिकार जोधपुर, फलोदी, पौकरन, सोजत और जैतारन के परगनों पर था। १. कहीं-कहीं पौष भी लिखा है। २. कर्नल टॉड ने इनका ई० सन् १४६१ से १५१६ तक २७ वर्ष राज्य करके पीपाड़ के युद्ध में मारा जाना लिखा है ( ऐनाल्स ऐंड ऐंटिक्विटीज़ ऑफ राजस्थान, भाग २, पृ० ६५२ ) । परन्तु यह ठीक नहीं है। इनके समय का वि० सं० १५५२ ( ई० सन् १४६५ ) का एक शिला-लेख आसोप से और वि० सं० १५६८ (चैत्रादि संवत् १५६६) की ज्येष्ठ सुदी २, सोमवार (ई. सन् १५१२ की १७ मई ) का दूसरा साथीण (बीलाड़ा परगने ) से मिला है । ३. कहते हैं कि राव सूजाजी ने १ डोली-कांकाणी २ मोडी-मनाणा ( जोधपुर परगने के), ३ बावड़ी-खुर्द और ४ बावड़ी-कलां ( फलोदी परगने के ) पुरोहितों को दान दिए थे। १०६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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