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________________ मारवाड़ का इतिहास ख्यातों से ज्ञात होता है कि राठोड़ भीम के पुत्र वरजाँग की साज़िश से बीकानेर के राव बीकाजी ने जोधपुर पर चढ़ाई की थी। परन्तु अन्त में, लोगों के समझाने से, दोनों भाइयों में मेल हो गया और बीकाजी बिना लड़े-भिड़े ही वापस लौट गए। इसके बाद राव सूजाजी की आज्ञा से इनके पुत्र शेखा ने रायपुर के सींधले खंगार पर चढ़ाई की। यद्यपि शुरू में उसने भी बड़ी वीरता से शेखा का सामना किया, तथापि १८ वें दिन, रसद आदि के समाप्त हो जाने से, उसे हार माननी पड़ी, और उसने इस चढ़ाई का खर्च देकर रावजी की अधीनता स्वीकार कर ली । इस समाधियां बनी हैं। उनमें से एक पर कुरान की आयत खुदी है। इसमें ईश्वर की सर्व-शक्तिमत्ता का वर्णन है । भादों सुदी ११ को वहाँ पर बड़ा मेला लगता है, और दूर-दूर से लोग यात्रार्थ आते हैं। यह रामदेव रामसापीर के नाम से प्रसिद्ध है, और उसके वंशज मरने पर जलाए जाने के बजाय गाड़े जाते हैं । ऊपर जिस हम्मीर का उल्लेख किया गया है, उसके वंशज, पौकरन के शासक होने के कारण, पौकरना राठोड़ कहाए। वि० सं० १५५१ (ई० सन् १४९४ ) में नरा ने अचानक जाकर पौकरन पर अधिकार कर लिया था । इसी से वि० सं० १५५५ ( ई० सन् १४६८) में, बाहड़मेर के राठोड़ों की सहायता से, पौकरना राठोड़ खींवा और उसका पुत्र लूंका पौकरन के मवेशी पकड़ कर ले गए। इसकी सूचना मिलते ही नरा ने उनका पीछा किया, परन्तु मार्ग में सामना होने पर नरा मारा गया। इसके बाद राव सूजाजी ने नरा के पुत्र गोविन्ददास को पौकरन और हम्मीर को फलोदी जागीर में दी । इसके बाद इन्होंने ( रावजी ने ) खींवा और लूंका को भी कुछ गांव जागीर में देकर शान्त कर दिया । वि० सं० १५७३ ( ई० सन् १५१६ ) का एक लेख फलोदी के किले के बाहर के द्वार पर खुदा है । उससे वहाँ पर, उस समय, हम्मीर का अधिकार होना पाया जाता है । ( जर्नल बंगाल एशियाटिक सोसाइटी, भा० १२, पृ० ६५) १. ख्यातों से ज्ञात होता है कि राव जोधाजी ने जिस समय अपने पुत्र बीकाजी को राव की पदवी देकर बीकानेर का स्वतंत्र शासक बनाया था, उस समय उनके लिये जोधपुर से छत्र, चवर आदि राज्य-चिह्न भेजने की प्रतिज्ञा की थी। इसी के अनुसार राव बीकाजी ने राव सूजाजी के समय उन वस्तुओं के ले आने को अपना आदमी भेजा। परन्तु सूजाजी के देने से इनकार करने पर उन्होंने जोधपुर पर चढ़ाई करदी । इसी बीच लोगों ने बीच-बचाव कर दोनों माइयों में मेल करवा दिया । २. ख्यातों में लिखा है कि रायपुर के सींधलों ने राव सत्ताजी के पुत्र नरबद की मान-हानि की थी । इसका बदला लेना भी इस चढ़ाई का एक कारण था । । (१) हम्मीर की रानी ने फलोदी का रानीसर तालाव बनवाया था । १०८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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