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________________ मारवाड़ का इतिहास और उसका छोटा भाई नरबद भागकर फ़तनखा के पास फ़तेपुरं मूंझनू चले गए, और छापर-द्रोणपुर ( जोधपुर-राज्य के लाडनू-प्रांत में ) पर राव जोधाजी का अधिकार हो गया। ___ इसके बाद रावजी ने फ़तनखाँ पर चढ़ाई की । तीन दिन के भीषण युद्ध के बाद फ़तनखाँ हार गया, और फ़तेपुर जला दिया गया। यह देख वैरसल मेवाड़ होता हुआ दिल्ली के बादशाह बहलोल लोदी के पास पहुँचा, और नरबद जौनपुर के बादशाह हुसैनशाह से सहायता प्राप्त करने गया । कुछ ही दिनों में दोनों बादशाहों ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर कुछ फौज उनके साथ कर दी । लौटने पर फ़तेपुर-झनू के पास उनका जोधाजी से मुकाबला हुआ । इस अवसर पर बीकाजी भी अपनी सेना लेकर पिता की सहायता को आ पहुँचे थे । कई दिनों के भीषण युद्ध के बाद शाही सेनाओं को मैदान छोड़कर भागना पड़ा। यहां से लौटकर रावजी द्रोणपुर गए, और कुछ दिन बाद वहां का प्रबन्ध अपने द्वितीय पुत्र जोगा को सौंप जोधपुर चले आए । परंतु जोगा से वहां का प्रबंध न हो सका, इसी से मोहिलों को वहां पर उपद्रव करने का मौका मिल गया । जैसे ही इसकी सूचना राव जोधाजी को मिली, वैसे ही इन्होंने अपने पुत्र बीदा को वहां का प्रबंध करने के लिये भेज दिया । उसने वहां पहुँच शीघ्र ही मोहिलों के उपद्रव को दबा दिया । वि० सं० १५३५ ( ई० सन् १४७८) में जालोर के शासक उसमानखाँ और सिरोही के रावल लाखाजी ने मारवाड़ में लूट-मार शुरू की । इस पर जोधाजी ने १. जोधानी ने नरबद को, अपने भाई कांधल का दौहित्र समम, कहलाया था कि यदि वह उनके पास आ जाय, तो उसे छापर का राज्य दिया जा सकता है । परंतु उसने यह बात स्वीकार नहीं की। २. कहते हैं, फलनखा ने वि० सं० १५१० (ई० सन् १४५३-हि० सन् ८५७ ) में अपने नाम पर यह नगर बसाया था। ३. कहते हैं, वैरसल महाराना कुम्भाजी का दौहित्र था । इसी से वह सहायता प्राप्त करने को वहां गया । परंतु महाराना रायमलनी ने जोधाली से विरोध करना अंगीकार नहीं किया। ४. रावजी के बड़े पुत्र नींबा का स्वर्गवास पहले ही हो चुका था। ५. ख्यातों में लिखा है कि रावजी को वहां का प्रबंध ठीक न हो सकने की सूचना पहले-पहल स्वयं उनकी पुत्र-वधू (जोगा की स्त्री) ने ही भिजवाई थी। ६. इसी से वह प्रदेश जो पहले मोहिलवाटी कहलाता था, बीदावाटी कहलाने लगा। ७. चौहानों की एक शाखा । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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