SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गव जोधाजी से विरोध बढ़ाना उचित न होकर मेल कर लेना ही अधिक उत्तम है । क्योंकि इधर यह अपने पिता का वैर लेने को तले हुए हैं, और उधर मालवे के सुलतान से झगड़ा चल रहा है' । ऐसे समय राठोड़ों से संधि कर लेना ही उचित है । राठोड़ों के गाड़ियों में बैठकर रण-क्षेत्र में आने से यह तो निश्चय ही है कि वे मरने-मारने का इरादा करके आए हैं । ऐसी हालत में हम जीते भी, तो यह विजय बहुत महँगी पड़ेगी । इसके अलावा इस युद्ध में हमारे योद्धाओं के हताहत हो जाने से मालवे के सुलतान को मेवाड़ को विध्वंस करने का मौका मिल जायगा । यह बात महाराना कुंभाजी की समझ में भी आ गई । इससे उनके आज्ञानुसार राजकुमार ऊदा (उदयसिंह )जी और साँखला नापा ने राव जोधाजी के शिविर में पहुँच, बहुत-सी कहा-सुनी के बाद, संधि की शर्ते तय कर डाली । बाँवल ( बबूल ) के पेड़वाली पृथ्वी जोधाजी को सौंप दी गई, और आँवलवाली जमीन महाराना के अधिकार में रही । इस प्रकार आपस में संधि हो जाने पर कुंभाजी लौट कर चित्तौड़ चले गएँ, और राव जोधाजी ने खैरवा पहुँच सींधल राठोड़ों पर सेना भेजी। उसने शीघ्र ही उनके पाली-परगने के ३० गाँव छीन लिए । इसके बाद सब झगड़ों से निपट जाने पर वि० सं० १५१५ (ई० सन् १४५८) में मंडोर के किले में राव जोधाजी का शास्त्रानुसार राज्याभिषेक किया गया, और १. हि० सन् ८४६ (वि० सं० १५०० ई. सन् १४४३ ) और हि० सन् ८६१ (वि० सं० १५१३ ई० सन् १४५६) के बीच की सुलतान महमूद खिलजी की मेवाड़ पर की चढ़ाइयों में इसकी पुष्टि होती है । २. ख्यातों में लिखा है कि संधि के समय महाराना कुम्भाजी ने अपने एक बंधु की कन्या का विवाह राव जोधाजी के साथ कर दिया था । ३. किसी-किसी ख्यात में इस घटना का समय वि०सं० १५१२ (ई०सन् १४५५) लिखा है। ४. 'राणा कुम्भा भजिगा, वीर खेत चलाया; 'नाडूलाई निहसिया, दम्मामावाया ।' ( ढाढी रामचंद्र-कृत नीशांणी ) इसमें कवि ने कुछ अतिशयोक्ति अवश्य कर दी है | ५. राव जोधाजी की मेवाड़ पर की चढ़ाई के समय इन्होंने साथ देने से इनकार कर दिया था । इसी से यह सेना भेजी गई थी । ख्यातों के अनुसार यह सेना वीसलपुर के स्वामी जसा पर गई थी। ख्यातों में जोधाजी का जैतारण के सींधलों को हराकर उन्हीं को अपनी तरफ से वहां का अधिकार देना भी लिखा मिलता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy