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________________ (घ) " I must too mention the despatch with which Mr. Drake Brockman has been able to push through the compilation of the long awaited History of Marwar, a task which the Historical Department through its life of three generations showed no signs of accomplishing." अर्थात् - " मैं यह प्रकट करना भी आवश्यक समझता हूं कि मारवाड़ का यह इतिहास, जिसकी बहुत समय से प्रतीक्षा की जा रही थी और जिसको सरकारी 'इतिहास-कार्यालय ' तीन पीढी वीत जाने पर भी तैयार नहीं कर सका था, मिस्टर डेकबोकमैन की प्रेरणा से शीघ्र ही तैयार हो गया।" इसके बाद वि० सं० १९९० (ई० स० १९३३ ) में 'पाकियॉलॉजीकल' महकमे की तरफ़ से (History of Rashtrakutas ( Rathodas )' और इसके अगले वर्ष उसी का हिन्दी संस्करण 'राष्ट्रकूटों ( राठोड़ों) का इतिहास' प्रकाशित किया गया। उनमें राव सीहाजी के मारवाड़ में आने से पूर्व का दक्षिण, लाट (गुजरात ) और कन्नौज के राष्ट्रकूटों ( राठोड़ों) का इतिहास दिया गया था । अब यह उसी का अगला भाग इतिहास-प्रेमियों के सामने उपस्थित किया जाता है । इसमें मारवाड़ के संक्षिप्त प्राचीनइतिहास के साथ-साथ राव सीहाजी के मारवाड़ में आने से लेकर अब तक का इतिहास दिया गया है। इस इतिहास को इस रूप में प्रस्तुत करने के कारण जिन लोगों के स्वार्थों में बाधा पहुँचती थी, उनकी तरफ से लेखक पर अनुचित दबाव डालने और शिखण्डियों के नाम से नोटिस-बाजी करने में भी कमी नहीं की गई । इसी सिलसिले में एक समय ऐसा भी आ गया, जब राज्य के कुछ प्रभावशाली लोगों ने षड्यन्त्र रच लेखक को राजकीय सेवा से हटा देने तक का प्रयत्न किया । परन्तु लेखक ने परिणाम की परवा न कर अपना कर्तव्य पालन करने में यथानाध्य त्रुटि न होने दी । अन्त में ईश्वर की कृपा से विरोधियों का सारा ही प्रयत्न विफल हो गया और जिस समय इस घटना की सूचना महाराजा साहब को मिली, उस समय आपने लेखक को बुलवाकर और स्वयं मामले की जाँच कर अपनी प्रसन्नता और सहानुभूति प्रकट की। यहां पर यह प्रकट कर देना भी आवश्यक प्रतीत होता है कि इस इतिहास का अधिकांश भाग ई० स० १९२७ से ही समालोचना के लिये हिन्दुस्तानी, सरस्वती, सुधा, माधुरी, विशालभारत, वीणा, चाँद, क्षत्रिय मित्र आदि हिन्दी की प्रसिद्ध-प्रसिद्ध Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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