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________________ मारवाड़ का इतिहास उनके बड़े भाई रावत चूंडा की देखभाल में रहा । परन्तु अन्त में हंसाबाई के चित्त में उसकी तरफ़ से सन्देह हो जाने के कारण वह मांडूके सुलतान होशंग के पास चला गया । इसके बाद महाराणा मोकलजी के छोटे होने के कारण मेवाड़ राज्य का सारा प्रबन्ध उनके मामू रणमल्लाजी को सौंपा गया । इन्होंने खास-खास पदोंपर विश्वासपात्र लोगों को नियत कर वहां का प्रबन्ध इतने अच्छे ढंग से किया कि युवावस्था प्राप्त कर लेने पर भी महाराणा ने उसमें किसी प्रकार के हेर-फेर करने की आवश्यकता नहीं समझी । इन कामों से निश्चिन्त हो वि० सं० १४८० ( ई० सन् १४२३ ) में रणमल्लजी अपने पिता राव चूंडाजी से मिलने को नागोर की तरफ़ चले । परन्तु उनके वहां पहुँचने के पूर्व ही राव चूंडाजी युद्ध में वीरगति प्राप्त कर चुके थे । इसलिये यह पिता की आज्ञानुसार अपने छोटे भाई कान्हाजी को वहां की गद्दी देकर, मंडोर होते हुए, अपनी जागीर की देखभाल के लिये धणले चले गए। साथ ही इन्होंने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिये खींवसी को भेज कर, नागोर से अजमेर जाते हुए, सैलीम को मरवा डाला । १. मोकलजी की अवस्था का छोटा होना राजपूताने के इतिहास में की इन पंक्तियों से भी सिद्ध होता है: 66 इस समय आप ( हंसाबाई ) का सती होना अनुचित है; क्योंकि महाराणा मोकल कम उम्र है, अतएव श्रापको राजमाता बनकर राज्य का प्रबन्ध करना चाहिए ।" ― ( पृ० ५८३ ) इसके अलावा यदि मोकल की अवस्था छोटी न होती तो पहले कुछ दिन के लिये चंडा को और उसके बाद रणमल्लजी को मेवाड़ के प्रबन्ध करने का अवसर ही क्यों मिलता । २. कर्नल टॉड ने लिखा है कि राव रणमल्ल अपने दौहित्र राणा मोकल को गोद में लेकर बापा रावल के सिंहासन पर बैठता था ( ऐनाल्स ऐंड ऐन्टिक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान, भा० २, पृ० ३२२ ) । परन्तु यह ठीक नहीं है । राजपूताने के इतिहास में उस समय मोकलजी की अवस्था का कमसे कम १२ वर्ष का होना माना है (देखो, पृ० ५८३, टिप्पणी १ ) । परन्तु हम वि० सं० १४६५ ( ई० सन् १४०८ ) में कान्हाजी के जन्म समय रणमल्लजी का राज्याधिकार छोड़कर मेवाड़ जाना, वहां पर उनकी बहन का विवाह महाराणा लाखाजी से होना और इसके बाद अगले वर्ष वि० सं० १४६६ ( ई० सन् १४०६ ) में उसके गर्भ से मोकल का जन्म लेना मानकर वि० सं० १४७७ ( ई० सन् १४२० ) के क़रीब लाखाजी की मृत्यु-समय मोकलजी की अवस्था का करीब १०-११ वर्ष की होना अनुमान करते हैं । ३. किसी-किसी ख्यान में सलीम का अजमेर से लौटते हुए मारा जाना लिखा है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ७२ www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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