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________________ मंत्रीश्वर विमलशाह सैनिकों ने समझा कि विमल ने हमारी खिल्ली उड़ाई है अतः उन्हें बहुत दुःख हुआ और वे सब क्रोध से आग बबूला हो गयें । कुछ ही देर में राजा भीमदेव भी वहाँ आ पहुँचे । उन्होंने भी लक्ष्य साधकर तीर फेंका परन्तु वह भी निष्फल गया । यह दृश्य देखकर विमलशाह को जरा हँसी आ गई और वे सहज ही बोल उठे - वाह महाराज वाह ! राजा भीमदेव और सैनिकों के सामने मुँह और मूँछ मरोड़कर विमलशाह से बोले बिना नहीं रहा गया और वे बोल उठे कि, अरे ! पाटण का राज्य भोटों के हाथ में आ गया है । राजा भोभदेव समझ गये कि यह कोई असाधारण व्यक्ति लगता है । यह तीरंदाज और महान् पराक्रमी दिखाई पड़ता है । भीमदेवने पूछा- क्यों विमलशाह ! किस कला में प्रवीण हों ? बोलने में तो बड़े चतुर और पारंगत लगते हो ! बताओ कौन-सी कला जानते हो ? धनुर्विद्या जानते हो ? यदि जानते हो तो उठो । २ : मंत्रीश्वर की धनुर्विद्या में निपुणता विमल बोले – महाराज ! धनुर्विद्या तो आप जैसे शूरवीर राजा महाराजा और आपके परमवीर सेवक जन जानें। हम तो रहे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034552
Book TitleMantrishwar Vimalshah
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtivijay Gani
PublisherLabdhi Lakshman Kirti Jain Yuvak Mandal
Publication Year1967
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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