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________________ * दीक्षा * [७१ ( विविध उपसर्ग ) भगवान् महावीर को अकैवल्य काल में मानव कृत आसुरिक-दैविक और पाशविक अनेक छोटे-बड़े उपसर्ग हुए हैं ; उनमें से कतिपय यहाँ उध्दृत किये जाते हैं (१) गवालिया का उपसर्ग-दीक्षा लेकर भगवान् तुरन्त ही विहार करते हुए ‘कुमार ग्राम' के पास आकर कायोत्सर्ग ध्यान में खड़े रहे, उस वक्त एक गवालिया ऐसा कहकर कि 'मेरे बैलों की निगाह रखना' अपने घर चला गया, वापिस आने पर बेल न मिलने से भगवान् को पूछा , ध्यानस्थ होने से उनने कुछ भी उत्तर नहीं दिया, तब क्रोधातुर होकर रस्सी से मारने को परमात्मा के नजीक आया, उसी वक्त ज्ञान द्वारा मालूम होने से शक्रेन्द्र वहाँ पहुच गया और गोपाल को भृत्सना करके भगवान् का परिचय कराया. (२) शूलपाणी का उपसर्ग-प्रयाण करते हुए भगवान एक दिन वर्धमान गांव (अस्थिग्राम) के बाहार शूलपाणी यक्ष के स्थान में कायोत्सर्ग ध्यान से ध्यानस्थ खडे रहे, संध्या समय वहाँ के ब्राह्मण इन्द्र शर्मा पूजारी ने कहा- हे आय ! यहाँ मत ठहरो, यह यक्ष बड़ा क्रुर है, आपको यहाँ कष्ट होगा, भगवान् मौन (Silent ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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