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________________ ६८] * महावीर जीवन प्रभा * (प्रथम पारणा ) भगवान् ने दीक्षा ग्रहण की उस दिन आपके छ?भत्त (दो उपवास) की तपस्या थी. उस दिन मात्र दो घड़ी दिन शेष था, तब भी वहाँ से विहार कर गये , कुमार ग्राम के पास आकर काउसग्ग ध्यान में खड़े रहे ; यहाँ से प्रातःकाल विहार कर ' कोल्लासक सन्निवेश' पधारे , वहाँ बहुल नामक ब्राह्मण के घर पर परमान (क्षीर) का पारणा हुवा , देवों ने प्रसन्न होकर वहाँ साड़ा बारह करोड़ १२५०००००० सोनयों की वर्षाकर उसे सुखी बना दिया. प्रकाश- अहा ! मुनी-दान का प्रत्यक्ष प्रभाव संसार के सम्मुख उपस्थित होगया, सच्चे दिल से और उदार भाव से दान देने का ही यह परिणिाम था, अनभिज्ञ और रागान्ध इससे यह सबक (Lesson) सीखें कि त्यागी महात्माओं की हार्दिक सेवा करें, पक्षपात के अन्धकार से बचें और खाउ-उड़ाउ लूटेरे साधुओं से बचकर रहें , सच्चे दान मार्ग को अपना कर अपना हित साधे- भगवान् ने थोड़ा वक्त रहने पर भी विहार करके साधु समाज को यह बताया कि दीक्षा लेकर उस स्थान पर नहीं रह सकते हैं, उसका वर्तमान में किञ्चित पालन होता है, पूरा नहीं; मुनि समाज को इस पर ध्यान देना चाहिये. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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