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________________ ६६ ] * महावीर जीवन प्रभा * ( प्रवासक्रम ) ( इन्द्र की प्रार्थना अस्वीकार ) प्रथम विहार में ही गवालिया का उपसर्ग होने पर शक्रेन्द्र ने आकर अत्यन्त भक्ति पूर्वक भगवान् महावीर से प्रार्थना की कि हे भगवन् ! बारह वर्ष पर्यन्त छद्मस्थावस्था (कैवल्य का पूर्व काल ) में आप को अनेक उपसर्ग (कष्ट) होंगे, उनको निवारण करने में आप की सेवा में रहना चाहता हूँ, आप कृपाकर आज्ञा बक्षो ! भगवन्त ने फ़रमाया हे इन्द्र ! ऐसा कभी हुवा नहीं, होता नहीं और होगा नहीं कि तीर्थंकर इन्द्रादि की सहायता से अपना कार्य करें, वे तो स्वयं ही अपने उत्थान - बलवीर्य - परुषार्थ और पराक्रम से केवल ज्ञान उपार्जन करके मोक्ष जाते हैं, इसलिये वे मन से भी कभी किसी की सहायता नहीं इच्छते; इतना कहने पर भी उपसर्ग निवारणार्थ भक्तिवश सिद्धार्थ देव को उन की सेवा में रखदिया और इन्द्र अपने स्थान पर वापस चला गया. प्रकाश - यह सोलह आना सत्य है कि पुरुषार्थ वादी कभी किसी की सहायता नहीं चाहता और कोई स्वतः देने की प्रार्थना करे तो उसे ठुकरा देता है, बलहीन ही Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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