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________________ * महावीर जीवन प्रभा * होगये और माता त्रिसला को सब हकीकत कही. देवीजी अत्यन्त चिन्तातुर हुई और अपने प्यारे पुत्र की प्रतीक्षा करने लगीं; वर्धमान कुमार के आते ही उनको प्रेमपूर्वक हृदय से लगाये , गोदमें खिलाये, न्हिलाये और वस्त्राभूषण से अलंकृत किये. श्वेताम्बर शास्त्रों में ऐसा उल्लेख है कि मोहवश माता-पिता ने आठ वर्ष की उम्र में वर्ध मान कुमार को पढ़ने के लिए पण्डित के पास भेजे, यह अनुचित कार्य नापसन्द होने से इन्द्र ने आकर पण्डित को वैयाकरणीय प्रश्न किये, उनके उत्तर भगवान् ने दिये, तब सब लोग चकित हो गये और उनको भगवान् के स्वयंबुद्ध का बोध हुवा. 'जैनेन्द्र व्याकरण' की उस वक्त रचना हुई बताई जाती है. परमात्मा तो स्वयं इस प्रकार होते हैं'अनध्ययनविद्वांसो। निर्दव्यपरमेश्वराः॥ अनलङ्कारसुभगाः। पान्तुयुष्मान् जिनेश्वराः॥१॥ 'भावार्थ-तीर्थकर देव विना पढ़े विद्वान होते हैं, द्रव्य विना परमेश्वर होते हैं, आभूषणं विना शोभा युक्त होते हैं ; ऐसे जिनेश्वर तुम्हारा रक्षण करो. प्रकाश- भगवान् के नैसर्गिक बल ने बालपन में ही देव को खूब स्वाद चखाया. शायद पाठकों को यह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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