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________________ १०] * महावीर जीवन प्रभा * आप समझ गए होंगे कि जैन मुनियों का कितना उच्च और आदर्श त्याग होता है। आप ऐसे उच्च त्याग की भावना करें- त्रिदण्डी के जीवन में यह बड़ी श्रद्धा थी कि हरएक मुमुक्षु को उपदेश देकर भगवान् के शरण में भेजदिया करता था; आप भी ऐसी श्रद्धा रक्खा करें, मरीचिने यह बहुत बुरा किया कि भरत महाराज के मुख से मंगल समाचार सुनकर गर्वगर्त में गिर गए; ऐसा आप कभी न करें; मरीचि में आत्मधर्म न होते हुए भी कपिल को धर्म होने की कही, इससे दीर्धकालीन भववृद्धि की; मताग्रह के मोह के कारण आप ऐसा करके अपनी आत्मा को न डूबायं प्रत्युत ढोरों के रहने लायक बाड़ाबन्दी को तोड़ कर सत्य प्ररूपणा करें- सत्तावीस भव पहिले ही मावि तीर्थकर के कारण महावीर का जीव मरीचि वन्दनीक होगया, यह सारा ही पूर्व करणी का फल है। यह जानकर आपको शुद्ध करणी करनी चाहिए, चाहे अल्प ही हो- प्रभु का तीसरा भव बड़ा विचित्र रहा. पच्चीसवें भव में भगवन्त ने तीर्थकर नाम का बंधन किया- इसही भरत क्षेत्रान्तरगत छत्रागा पुरी में नन्दन नाम का नरेन्द्र था, २४ चौवीस लक्ष वर्ष पर्यन्त गृहस्थावास में रहकर पोडीलाचार्य महाराज के पास त्यागदीक्षा ग्रहण की; एक लाख वर्ष तक महिने-महिने की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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