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________________ ४] * महावीर जीवन प्रभा * प्रकरण पहिला [ पूर्वकाल ] ( सत्तावीस भव ) जैन सिद्धान्तों की ऐसी मान्यता है कि सम्यक्त्व (Right-belief) यानी श्रद्धा ( मोक्ष का बीज ) प्राप्ति के पश्चात् के भव ही संख्या में शुमार होते हैं; इस नियम के अनुसार भगवन्त महावीर के सत्तावीस भवों में से छब्बीस भवों का मात्र दिग्दर्शन कराते हैं; और सत्तावीसवें भव का विस्तृत वर्णन करेंगे. उनके नाम ये हैं Vlaand ग्रामेशस्त्रिदशो मरीचिरमरो, षोढा परिवाद सुरः । संसारो बहु विश्वभूतिरमरो, नारायणो नारकः ॥ सिंहो नैरयिको भवेषु बहुश-वक्री सुरो नन्दनः । श्री पुष्पोत्तर निर्जरोऽवतु भवा - द्वीरस्त्रिलोकी गुरुः ॥ १ ॥ अर्थ - १ ग्रामचिन्तक २ देव ३ मरीचि ४- १५ देव और परिव्राजक क्रमशः १६ देव - बहुत से क्षुल्लक भव १७ विश्वभूति १८ देव १९ वासुदेव २० नारक २१ सिंह २२ नारक - बहुत छोटे छोटे भव २३ चक्रवर्ती २४ देव २५ नन्दन राजा २६ प्राणत नामक दसम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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