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________________ १५० ] * महावीर जीवन प्रभा * नहीं आतीं, और बच्चों को दूध-दही- घी - छास आराम से अच्छी मात्रा में मिलती; आज कहाँ गए वे गोपाल श्री कृष्ण के उपासक, जिनके घर में नित्य गायों के दर्शन होते थे. अनुभवियों का कथन है कि सर्व धनों में पशु धन प्रधान है. वांचको ! क्या आप आनन्द श्रावक के जीवन से बोध ग्रहण करके गृहस्थ - धर्मका यथावत् पालन करेंगे ? व्रत नियम से अपना हित साधेंगे और बाल बच्चों को आराम पहुँचायेंगे ? कि वही एक पैसे का दूध, धेले का दही और भीख की छास में ही मस्त रहेंगे ! संभव है नैतिक विचार करके अपनी जीवन यात्रा सुचारु रूप से पूरी करेंगे. ( शासन रत्न ) महावीर के शासन में अनेक नर रत्न- मुनिरत्न और श्रावकरत्न होगये हैं, उनमें से कितनेक मुनिवरों के नाम उल्लेख करते हैं: १. सौधर्म गणधर - भगवान् महावीर के प्रथम पट्टधर, शासन के हाइकमान्डर. २. जम्बूस्वामी - भगवान् के द्वीतीय पटधर अन्तिम केवली. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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