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________________ * कैवल्य * [१२७ (समस्त चतुर्मास) भगवान् महावीर देव के कुल ४२ चतुर्मास हुएदुइजन्त तापस के आश्रम में १- चम्पा और पृष्ट चम्पामें ३-विशाला और वाणिज्य ग्राम में १२-राजगृही नगरी के नालिन्दे पाड़े में १४-मिथिला नगरी में ६-भद्रि का नगरी में २-आलंभिका नगरी में १-सावत्थी नगरी में १-अनार्य देशमें १-मध्यपावापुरी में हस्तिपाल राजा की जीर्ण दानशाला में अन्तिम चौमासा १; इस तरह समस्त ४२ बयालीस चतुर्मास हुवे. प्रकाश-- महावीर भगवन्त छद्मस्थ अवस्था में तो प्रायः मौन ही रहे, इससे संसार का विशेष उपकार न हो सका; पर कैवल्य के बाद ३० चतुर्मास में जनता पर अत्युपकार हुवा, स्थानिक लोगों ने अपार लाभ लिया, कई लोग व्रत-नियम अंगीकार कर कृतार्थ हुए , तपस्या कर जीवन पवित्र बनाया- आप भी अपने क्षेत्र में विराजित मुनिवरों से कुछ लाभ उठाते हैं या नहीं ? कि वही गुल्ली और वही डंडा, बारह ही मास समान भाव , खाया , कमाया और गुमाया में ही अलमस्त बन कर जीवन यात्रा को पूरी करते हैं; अगर ऐसा होता हो तो दिशा बदलनी चाहिए और प्रयत्नशील बनकर आत्म हित के लिए पूर्ण शक्ति ( Full-force) द्वारा शिष्ट प्रवृत्ति आचरनी चाहिए. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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