SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * कैवल्य * [१२१ चले गए, तब तेने पैर नीचे रक्खा पर्वत शिखर के माफिक टूट कर तू जमीन पर गिर गया, भारी वेदना सहन कर तीन दिन के बाद तू मर कर जीवदया के प्रभाव से यहाँ 'मेघकुमार' हुवा हे महानुभाव ! पशुभव में भी तूने इतना कष्ट सहन किया तथापि तुझे दुःख उत्पन्न न हुवा तो इस वक्त साधुओं की ठोकरों से चारित्र से चलायमान होगया, इतनी ऋद्धि छोड़ कर चारित्र लिया और अब शिथिल बनगया, यह शोभास्पद नहीं है। भाग्यशालियों को ही चारित्र उदय आता है. ___ वीर प्रभु की मधुरी वाणी सुन कर मेघकुमार को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न होगया, अपना पूर्व भव( Previousbirth) जानकर चारित्र में स्थिर हुवा; मुनिवर ने अब ऐसा उग्र अभिग्रह धारण किया कि 'नेत्रों की परिचर्या, के सिवा शरीर की कतई हिफाजत नहीं करना; ऐसा निश्चय कर तपस्या करना प्रारम्भ कर दिया, द्वादश वर्ष पर्यन्त निर्दोष चारित्र पालन कर अनुत्तर नामक देवलोक में उत्पन्न हुए, वहाँ से महाविदेह में जन्म लेंगे और चारित्र लेकर मोक्ष पधार जायंगे. प्रकाश- भगवान् की पतितपावन उपमा यहाँ सार्थक हुई आपने सार्थवाह की तरह भूले को मार्ग दिखाया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy