SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११८] * महावीर जीवन प्रभा * में द्वादशाङ्ग सूत्रों की रचना करली. भगवन्त ने "गौतम " नाम स्थापन किया और आपको प्रथम गणधर बनायेइन्द्रभूति की दीक्षा सुनकर अग्निभूति आदि दस उपाध्याय गर्वान्वित होकर परमात्मा के पास क्रमशः आये ; सबके शंसय मिटा दिये, सर्व भगवान के शिष्य बन गये इस तरह यहाँ ग्यारह गणधरों की स्थापना की गई , इनका पूर्व परिवार इन्हीं के नाम से शिष्य रूप कायम किया गया. पश्चात् चन्दनबाला ने भगवद् वाणी श्रवण कर वैराग्यपूर्ण प्रव्रज्या अंगीकार की, पूर्व वर्षित द्रव्य से दीक्षा महोत्सव मनाया गया , इनके साथ मृगावती आदि अनेकों ने दीक्षा अंगीकार की- शंख , शतकादि श्रावक हुए, सुलसा रेवती आदि श्राविकाएँ हुई; इस प्रकार चतुर्विध संघ की स्थापना कर भव्य जीवों को प्रतिबोध देते हुवे भूमण्डल पर प्रभु विचरने लगे. प्रकाश- जैन सिद्धान्त का फरमान है कि हर एक तीर्थकर के शासन में संघ स्थापना होती है, पूर्व तीर्थकर शासन का संघ वर्तमान तीर्थकर की आज्ञा में आजाता है , पर नायक की विद्यमानी में अलग खीचड़ी नहीं पकाई जासकती; पार्श्वनाथ के तमाम सन्तानिये क्रमशः महावीर देव के शासन में सम्मिलित होगये- इसही निय मानुसार महावीर भगवान् ने भी संघ-स्थापना की. संघ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy