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________________ ११०] * महावीर जीवन प्रभा * इन उपाध्यायों में पांच को ५००-५०० का परिवार था, छट्टे-सातवें को ३५०-३५० का परिवार था, शेष चार को ३००-३०० का परिवार था; कुल ४४०० विद्यार्थी जन इनके पास अध्ययन करते थे; शेष कइएक आचार्य-उपाध्याय-याज्ञिक-त्रिवाड़ी- व्यास-पण्डितजोशी-द्विवेदी-त्रिवेदी-चतुर्वेदी; इत्यादि जाति के ब्राह्मण उपस्थित थे, ये सब स्वर्ग की इच्छा से यज्ञ करते थे. इनमें सबसे बड़ा याज्ञिक इन्द्रभूति था. इधर भगवान के समवरण में संख्यातीत देव-देवाङ्गनाएँ यज्ञ का वाड़ा छोड़कर “चलो सर्वज्ञ देव को वन्दन करने शीघ्र चलो" ऐसा बोलते हुए वर्धमान स्वामी के निकट पहुँच गये. प्रकाश- भगवान् महावीर की दूसरी देशना ने चहल-पहल करदी, लाखोंजन धर्म मार्ग में प्रवृत्त हुए, दर्शान्तरियों के पेट में खलबली मचादी, अहिंसा का ध्वज ( Non-violent flag ) फहराने लगा, सत्यका शीतल समीर बहने लगा, तमाम पाखण्डियों के पेट का पानी जोरों से हिल गया, धर्ममूर्ति भगवान् की ज्योति जगमगाने लगी, भावि गणधरों की अवस्था उथल-पुथल होने लगी, बाहयाडम्बर की अन्तिम घड़ियाँ भागने लगी, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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