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________________ * कैवल्य * [१०७ समान कोई पुण्यात्मा नहीं होता- संसार में और है ही क्या ? पुण्य-पाप का ही खेल है, एक सुखी और एक दुःखी, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है. क्या आप भी पुण्य संचय करने की प्रवृत्ति करेंगे? कि वासी खाकर ही जीवन बसर करेंगे ! आराम की इच्छा हो तो सद्बुद्धि से शुभ प्रवृत्तियों की आचरण कर सुखी बनना चाहिए. ___(प्रथम देशना ) ___महावीर देव " नमोतित्थस्स" कहकर समवसरण में पूर्वाभिमुख बिराजे , व्यन्तर देवों ने शेष तीन दिशाओं में वीर भगवान् की तदाकार मूर्तियाँ स्थापन करदी, जिससे तमाम श्रोता दर्शन कर सकें और श्रवण का समान लाभ लेसकें- यह परमात्मा का प्रभाव था कि चारों ओर बोलते नज़र आते- भगवन्त की वाणी एक योजन तक 'मेघ-गर्जनावत' सुनाई देती थी, भारी आश्चर्य तो यह था कि वे एक ही प्रकार से बोलते थे, पर सारी पर्षदा अपनी अपनी भाषा में समझ जाती थी। जिस तरह वर्षा का जल हर एक वस्तु के साथ तद्रस होजाता है- तिर्थकर देव की वैराग्य-वाहिनी सुखप्रदा प्रथम देशना असफल हुई; यानी किसी ने व्रत-नियम अंगीकार नहीं किये. प्रकाश- जैन शास्त्रों ने देशना खाली जाने को 'अच्छेरक ' यानी आश्चर्य माना है , कारण कि प्रभु की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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