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________________ * दीक्षा * ९३] भाग गया, उसकी पत्नी धारणी रानी शीलरक्षा के लिये अपनी जीभ किचर कर मर गई और पुत्री चन्दनवाला को पकड़ कर एक सुभट ने धन्य सेठ को बेंच दी, उसकी मूला स्त्री को यह शक हो गया कि में बूढी हूँ, सेठ मुझे छोड़कर इस युवती को पत्नी बनावेगा, इसही लिये ले आया है. सेठ के बाहार जाने पर मूला सेठानी ने चन्दनबाला का मस्तक मूंड दिया, पैरों में जंजीर पहना दी, तलघर में डालदी और ताला बन्द कर अपने पीहर चली गई, चौथे दिन सेठ आया, तलाश कर चन्दना को बाहर निकाली, उक्त स्थिति में देख कर सेठ ने कहा- जब तक मलुहार को ले आता हूँ तब तक तू मुंह धोकर सुपड़े में रहे हुवे उड़द के बाकुले खाना; यह कह कर सेठ चलागया. इस वक्त चन्दना ने विचार किया कि "आज मेरे अष्टम तप (तीन उपवास) का पारणा है, कोई महात्मा पधार जायें तो उनको दान देकर खाउं" ऐसी भावना ही कर रही थी कि मिक्षा के लिये भ्रमण करते हुवे महावीर भगवान् पधारे, अभिग्रह के मुताबिक सब बातें मिल गई, सिर्फ आंख में आंसू नहीं थे, बस भगवान् तुरन्त वापस लौटने लगे, चन्दना रोने लगी- अहो ! मुझ मन्द भागिनी के हाथ से भुमरे वाकुले नहीं बहरे; ऐसा सुनकर भगवन्त पीछे फिरे, आँसू देख कर सहर्ष वाकुले बहर लिये, चन्दना अत्यन्त प्रसन्न होगई. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034546
Book TitleMahavir Jivan Prabha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagar
PublisherAnandsagar Gyanbhandar
Publication Year1943
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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