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________________ ( १९ ) नाग गोत्र की चोरडिया, गुलेच्छा, गदइया, पारख, नावरिया, बुचा, सावसुखा आदि ८४ जातियें बन गई हैं। इसी तरह अन्य गोत्रों के लिये भी समझ लेना चाहिये। पर दुःख और महादुःख तो इस बात का है कि वृक्ष कितना ही बड़ा और शाखा प्रतिशाखा संपन्न हो पर जब उसके अंग प्रत्यंगों में असाध्य रोग पैदा हो जाता है तब वे शाखा प्रतिशाखायें तो क्या पर स्वयं वृक्ष ही मूल से नष्ट हो जाता है और यदि कुछ शेष रह भी जाता है तो केवल देखने को निर्जीव स्थाणु नजर आता है। यही हाल हमारी ओसवाल जाति का भी हुआ है कि इसने आज कई एक संक्रामक रोगों को अपने अंगप्रत्यंगो में ही नहीं किन्तु रोम रोम में व्याप्त कर रखा है। इससे यह मात्र देखने को निर्जीव सी नजर आती है किन्तु वास्तव में इसमें कोई वास्तविकता शेष नहीं रह गई है और इस जाति की विशेष संख्या का नाम केवल कुलगुरुओं की वंशावली की बहियों में ही रह गया __"महाजन संघ" जैसा आजकल नजर आता है पूर्वकाल में ऐसा ही नहीं था परन्तु भारत और भारत के बाहिर क्या राजतंत्र चलाने में, क्या युद्ध विजय करने में, क्या व्यापार में, क्या धमाकार्यों में द्रव्य व्यय करने में, और क्या दुकाल सुकाल या जुल्मी बादशाहों की करबन्दी में, पीड़ित देश भाइयों का उद्धार करने में बड़ा ही वोर एवं उदार था। यही कारण था कि उस समय के राजा महाराजा, बादशाह एवं सर्व साधारण नागरिकों की ओर से उस महाजन संघ को जगत सेठ, नगर सेठ, पंच, चोवटिया, चौधरी और टीकायत आदि महत्वशाली पदवियों से Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034543
Book TitleMahajan Sangh Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1937
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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