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________________ ३६ करुणरसकदंबकं [ २४ ] पियपुत्तविओगे सुरसुंदरीए कमलावईए य विलावो । हा मह इमस्स दुक्खागरस्स हिययस्स वज्ज - घडियस्स । अस्सोव्वं सोच्चा वि, फुट्टए जं न सैइ - खंडं ॥ २ ॥ किं धरिएहिं इण्हि, इमेहिं पाणेहिं दुक्ख - निलएहिं ? | मण-वल्लहस्स जायम्मि मँगले जाण - भंगमि ॥ ३ ॥ सइ दंसणे वि नेहस्स पगरिसो दंसिओ तर नाह ! | सत्तुजएण रुद्धो, विमोइओ जेण ताओत्ति ॥ ४ ॥ अवहरिया जेणाहं, सुरेण तेणेव छिन्न-वर - विज्जो । कह हो हिसि नाह! तुमं, जाण - विवत्तीए जलहिम्मि ॥ ५ ॥ हा कह ससंक-कर-निम्मलं मुहं नाह ! तुह पलोइस्सं । एवम् विहिए, विहिणा हैय - भागधेया हं ? ॥ ६ ॥ चल - नेहाओ महिलाओ होंति सच्चो जणप्पवाओऽयं । जं एरिसे वि निलुए, अज्ज वि जीवामि पावा हं ॥ ७ ॥ एमाइ विचितेंती, सोगा बेगाओ विगय- चेयन्ना | पास-ट्ठिय- देवीए, पडिया मुच्छाए उच्छंगे ॥ ८ ॥ कमलावई वि देवी, संभाविय-सुय-विओग-सोगत्ता । बाह - जलाविल- नयणा, विलविउमेवं समादत्ता ॥ ९ ॥ हा पुत्तय ! अडवीए, तइया मह जाय - मित्तओ हरिओ । इहिपि कय- दंसण !, कत्थ गओ मह अउन्नाए ? ॥ १० ॥ ૧ નહિ સાંભળવા લાયક. ૨ સેંકડા કટકા રૂપે. ઢ અશુભ. ૪ એક बार. प भाग्यहीन । व्यधन्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034534
Book TitleKarunras Kadambakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturvijay Gani
PublisherJivanbhai Chotalal Sanghvi
Publication Year1941
Total Pages326
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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