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________________ ( ३६ ) तपस्या-क्रम बदलना पड़ता है और फिर उल्टे चलकर अन्तमें एक उपवास तक आकर तपस्याका अन्त करना होता है। जो इस तपस्याको चार बार कर चुकता है वह बहुत ही उम्र तपस्वी समझा जाता है। तीन श्रेणियोंका वर्णन ऊपर आ चुका है। चौथी श्रेणीमें पारणके दिन सिर्फ उड़दके बाकले और जल लेना पड़ता है। स्वामी चुन्नीलालजीने तीन श्रेणियों तक इस तपस्याको पूरा कर लिया, परन्तु चौथी श्रेणीको पूरा करनेके पहिले ही उनका देहान्त हो गया । तेरापंथियोंके एक अन्य साधु हुलासमलजी महाराज ने चतुर्थ, प्रथम तथा तृतीय श्रेणी तक इस तपस्याको पूरा किया परन्तु द्वितीय श्रेणीका तप प्रारम्भ न कर सके। ३५ वर्षके साधु जीवनमें साधु चुन्नीलालजी के ८००० दिन उपवास के अर्थात् लगभग २२ वर्ष तपस्याके रहे। अब स्वामी रणजीतमलजी तथा आशारामजीको तपस्याओंका वर्णन देकर इस प्रकरणको समाप्त करेंगे। __स्वामी रणजीतमलजी का जन्म सं० १६१८ में हुआ था। वे मेवाड़के पुर प्राममें जन्मे थे और चौथमलजी बनौलियाके पुत्र थे। चौथमलजीने प्राचार्य श्री मघराजजी स्वामीके हाथसे दीक्षा ली थी। खुद चौथमलजी भी उग्र तपस्वी थे। उन्होंने १९५५ में छः महीनों तककी तपस्या की। उनका स्वर्गारोहण सं० १६५६ में हुआ। साधु रणजीतमल जी भी योग्य तपस्वी निकले। सं० १६७४ से प्रारम्भ कर उन्होंने कभी लगातार दो दिन आहार नहीं लिया। वे बड़े ही विनय. शील तपस्वी थे। उनका अन्तिम उपवास निरन्तर ६० दिनका था। आषाढ़ सुदी २ सं० १९८९ के दिन वर्तमान प्राचार्य श्री श्री कालु. रामजी महाराज जब सरदार शहर पहुँचे उस समय रणजीतमलजीने पारण किया था, एवं उसी पारणेके दिन ही प्राचार्य महाराज से संथारा करनेकी भाशा देने की विनती की। परन्तु पूज्यजी महाराजने उन्हें संथारेकी पाशा न दी। निराश न होकर स्वामी रणजीतमलजी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034529
Book TitleJain Shwetambar Terapanthi Sampraday Ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publication Year1945
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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