SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३१ ) सहयोग न करना-यही सबसे बड़ी दया है। अभयदान सबसे बड़ी दया है। इससे बढ़कर दयाकी कल्पना नहीं की जा सकती। सब जीव सुखके लिये लालायित हैं, दुःख सबको अप्रिय है, मृत्युसे सब कोई भय खाते हैं। इसलिए जब कोई नहीं मारनेकी प्रतिज्ञा करता है तो वह जीवोंके सबसे बड़े भयको दूर करता है । अपनी ओरसे कोई भयकी आशङ्का उनके लिए नहीं रहने देता। इससे बढ़कर दयाका श्रादर्श और क्या होगा? जैन मतके अनुसार सब जीव समान हैं। इनकी दृष्टिमें एकेन्द्रियसे लेकर पंचेन्द्रिय तकके जीवोंमें कोई फरक नहीं। एकके सुखके लिये दूसरे को दुःख पहुँचाना इनकी दृष्टिमें अनुचित और पाप जनक है। सुखेच्छा की दृष्टिसे सभी जीव सदृश हैं । इसलिए पंचेन्द्रियके सुखके लिये एकेन्द्रियकी घात करना, राग द्वेषके अतिरिक्त और कुछ नहीं। इसीलिए साधु सचित्त वस्तुओंके दानका उपदेश नहीं दे सकते और न अनुमोदन ही कर सकते । जहां एक जीव दूसरे जीव पर झपट रहा हो यहाँ साधु निर्विकार चित्तसे तटस्थ रहते हैं । वे एकको डराकर दूसरेको बचानेकी चेष्टा नहीं कर सकते । बिल्ली चूहे पर झपट रही हो तो साधू बिल्लीको डरा कर भगानेकी चेष्टा नहीं करेंगे न वे यह चाहेंगे कि चहा ही मारा जाय । ऐसे अवसर पर वह ध्यानस्थ होकर निर्विफार चित्तसे बैठे रहेंगे। न्यायकी दृष्टिसे भी ऐसा ही करना उचित है । एक जीवको जबरवस्ती से भूखा रखकर, दूसरे जीवको बचाना न्यायकी दृष्टि से मसंगत है। यह तो ठीक वैसा ही है जैसा कि एकको चपत लगामा भार दूसरे का उपद्रव दूर करना। ऐसे राग द्वेषके कार्यों से साधु कोसों दूर रहते हैं। जहां दो जीवोंमें आपसमें कलह हो रहा हो वहां साधु यदि उपदेश द्वारा कुछ कार्य कर सकते हैं तो ही करते हैं। धर्म उपदेशका है, न की जबरदस्तीका। जहां उपदेश नहीं दिया जा सकता या उसका मसर होना असम्भव मालूम होता है वहां साध राग शेष रहित हो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat Www.umaragyanbhandar.com
SR No.034529
Book TitleJain Shwetambar Terapanthi Sampraday Ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publication Year1945
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy