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________________ ( २ ) है। इसी प्रकार यदि कोई मद्यपायी, साधु समागमके कारण, मद्यपानके दुखद परिणामोंको समझ, त्याग.भावनासे, किन्तु अभ्यासके वशीभूत होने के कारण सम्पूर्णतया मद्यपान त्याग करनेमें असमर्थ हो, यह प्रतिज्ञा करता है कि "मैं पाजसे २ प्यालेसे अधिक मदिरा पानका त्याग करता हूँ" तो क्या उसे इस प्रतिज्ञाके कारण २ प्याला मदिरा पानका दोष न लगेगा ? उस मद्यपायीने २ प्यालेसे अधिक मद्यपानका त्याग किया यह उसका व्रत है, आज्ञामें है, सराहनीय है न की २ प्यालोंकी छूट-श्रागार जो कि उसने अपनी कमजोरीके कारण रखा है । वह तो पाप ही है। त्यागका वास्तविक मर्म न समझने वाले इसे ठीक तौर पर नहीं समझते एवं श्रागारको भी धर्म मान बैठते हैं। इस प्रकार श्रावकका खाना पीना, चलना फिरना आदि सारी बातें अव्रतमें हैं । अतः इन सबके कारण उसके निरन्तर कर्म बन्धते रहते हैं परस्तु साधु अनागारी होनेसे उन्हें किसी प्रकारके पाप नहीं लगते । जो न तो सावुकी तरह सर्वव्रती है और न श्रावककी तरह अणुव्रती, वह सम्पूर्ण असंयती है, उसके लिये पापका रास्ता चारों तरफ खुला है। जो जितने अंशमें ब्रतोंको अङ्गीकार करता है वह उतने ही अंशोंमें पाप कर्मसे बचा रहता है-उसके नये काँका संचार नहीं होता। जो जितनी अधिक छूटें रखता है-अपनी इच्छाओंको जितना कम संयममें रखता-वह उतना ही अधिक पापोपार्जन करता है। कुछ जैननामधारी कहते हैं कि श्रावककी छूटोंके लिये भी उसे धर्म ही होता है क्योंकि गाहस्थिक जीवन के निर्वाह के लिये उन छूटोंकी नितान्त आवश्यकता रहती है, किन्तु तेरापन्थी तो इसे मिथ्या बतलाते हैं। भगवानने साधुओंको जो छूटें दी हैं ये छूटें उनके संयमी जीवनका अङ्ग हैं इसलिये धर्म हैं। श्रावककी छूटें उसकी अपनी बनाई छूटें हैंउसके गार्हस्थिक जीवनकी अङ्ग हैं, उसके असंयम वृद्धि एवं पोषणके कारण हैं अतः पाप हैं। एककी छूटे धर्मके यथोचित पालनके लिये पावश्यक हैं, दूसरेकी छूटें गृहस्थीमें अधिकाधिक मुग्ध एवं लिप्त होनेके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034529
Book TitleJain Shwetambar Terapanthi Sampraday Ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publication Year1945
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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