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________________ ( ख ) भीखणजी स्वामीने उठाया। उनके परवर्ती स्वनामधन्य आचार्यगण अपने प्राचार व प्ररूपणासे जैनधर्मके महत्व, विशालत्व, निर्दोषत्व अविसंवादित्व संसार के सामने रख तीर्थंकर भगवानके बचनोंको श्रादरके साथ अंगीकार करने के लिये लोगों को उबुद्ध करते आये हैं एवं कर रहे हैं। तेरापंथी मतकी उत्पत्ति व उसकी मान्यताके सम्बन्धमें बहुत-सी भ्रान्तधारणा लोक समाजमें फैली हुई है। उन भ्रान्त धारणाओंको दूर करनेके लिये इस पुस्तकका प्रकाशन किया जाता है। जन्म जरामृत्यु-मय संसारसे मुक्ति पानेके चार उपाय-ज्ञान, दर्शन, चारित्र तप अथवा दान, शील, तप, और भावना बतलाये हैं। तेरापंथी सम्प्रदायके साधुवग उपदेश द्वारा, शास्त्रीय प्रमाण द्वारा व अपने जीवनयापन-प्रणाली द्वारा इन उपायोंको किस प्रकार कार्यरूपमें लाया जा सकता है यह प्रत्यक्ष दिखा रहे हैं। इस संक्षित इतिहास के पहले अगरेजी भाषामें दो संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। हिन्दी भाषा भापियों के लिये यह हिन्दी का द्वितीय संस्करण है । इस मतका, इसके पूजनीय आचार्योंका व इसके कुछ तपस्वी मुनिराजों का संक्षिप्त परिचय मात्र इसमें दिया गया है। तेरापंथी साधुओंका आदर्श जीवन, उनका त्याग, उनका वैराग्य, उनका ज्ञान, उनकी विद्वता, उनकी प्रतिभा आदि गुणराशि का प्रकृष्ट परिचय उनके दर्शन व सेवासे मिल सकता है। पाठकगणसे निवेदन है कि दूसरोंके द्वेष पूर्ण प्रचारसे अपने विचारोंको दूषित न कर सत्यका अनुसंधान करें व गुणीजनोंका समुचित समादर कर उनसे उचित लाभ उठावें। अन्तमें निवेदन है कि छपाई कार्य शीघ्रतासे करानेके कारण भूल चूक रह जानी सम्भव है आशा है पाठक उनके लिये क्षमा करेंगे। कलकत्ता ) श्रीचंद रामपुरिया चैत सुदी १५-२००१ ) अ० मंत्री, श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी समा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034529
Book TitleJain Shwetambar Terapanthi Sampraday Ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publication Year1945
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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