SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २२ ) पड़ती है कि गाँव हो या जङ्गलमें छोटी हो या बडी, कोई भी बिना दी हुई वस्तु वह न लेगा, न दूसरेसे लिरायगा, न लेते हुओंका अनुमोदन करेगा। इस व्रतके ही कारण जैन साधु बिना माता पिता स्वामी या स्त्री या अन्य सम्बन्धियोंकी आज्ञाके, दीक्षाके लिए तैयार होने पर भी, किसी व्यक्तिको दीक्षा नहीं देते। यह व्रत भी अन्य व्रतोंकी तरह मन वचन और कायासे ग्रहण करना पड़ता है। (४) मैथुन विरमण व्रत: - इस व्रत के अनुसार साधुको पूर्ण ब्रह्मचर्य पालन करना पड़ता है। साधुको मन वचन और कायासे पूर्ण ब्रह्मचर्य पालनकी प्रतिज्ञा लेनी पड़ती है । वह देव, मनुष्य या तिर्यच्च कोई सम्बन्धी मैथुन नहीं कर सकता, न करा सकता और न मैथुन संभोग वालाका अनुमोदना कर सकता है। स्त्री मात्रको स्पर्श करना साधुके लिए और पुरुष मात्रका स्पर्श करना साध्वियोंके लिए पाप है । जिस मकान में साध्वियां या अन्य स्त्रियां रहती हों वहां साधु रात्रि वास नहीं कर सकते और न एक स्त्रीके पास दिन में ही वे ठहर सकते हैं। ( ५ ) अपरिग्रह व्रत: - इस व्रत के अनुसार साधुओं को सब प्रकारके धनधान्यादि परिग्रह का त्यागी होना पड़ता है। वे किसी प्रकार की जायदाद नहीं रख सकते, न धन जेवर, दास दासी आदि ही रख सकते हैं । अपरिग्रह व्रतका मन वचन और कायासे पालन करना पड़ता है और जिस प्रकार वे स्वयं परिग्रह नहीं रख सकते उसी प्रकार दूसरों से भी परिग्रह नहीं रखवा सकते और न जो दूसरे रखते हैं उनका अनुमोदन कर सकते हैं । उपरोक्त पाँच व्रतोंके अतिरिक्त एक छट्टा रात्रिभोजनत्याग व्रत भी साधुओंको पालन करना पड़ता है। इस व्रत के अनुसार साधु किसी प्रकारका आहार पानी रात्रि में - सूर्यास्तसे सूर्योदय तक नहीं - करते । मन वचन और कायासे उन्हें इस व्रतका पालन करना पड़ता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034529
Book TitleJain Shwetambar Terapanthi Sampraday Ka Sankshipta Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Rampuriya
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Sabha
Publication Year1945
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy