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________________ श्री जैन शासन संस्था ९. इच्छानुसार ( मन पसंद ) वस्त्र पहनने से स्वयं की महत्ता बढ़ती है, प्रभु की महत्ता घटती है। १०. परमात्मा की महत्ता कायम रखना हो, उसमें वृद्धि करना हो तो श्रावक श्राविकाओं को उचित वस्त्र ही पहनने चाहिये। ११. धातु के प्रतिमाजी तथा नवपदजी (सिद्धचक्रजी) दोनों हाथों में ग्रहण करने से उनका बहुमान कायम रहता है । १२. आवश्यक होने पर प्रभुजी, नवपदजी आदि पर खसकूची बहुत मुलायम (हल्के, धीमे) हाथ से करें। १३. पाट लुंछणा (पाट पूंछणा) करने के बाद हाथ धो . पूंछकर अंगलूछणां (अंगलूणा) करें। १४. पाट लुछणा तथा अंगलूणा भूमि पर अथवा पबासण . (पेढ़ी-ओटला) पर न रखें । अलग-अलग बर्तन में रखें। १५. प्रभु पूजा में भगवान तथा नवपदजी की पूजा करने के बाद गुरु एवं उसके बाद देव देवीआदि की करें। १६. गुरु पूजा एवं देव देवी को पूजा में वापरे हुए चंदन से प्रभु पूजा नहीं होती हैं। १७. देव देवी-यक्ष यक्षिणी मणिभद्रजी आदि की पूजा अंगूठे से तिलक लगाकर करें, तर्जनी अंगुली से नहीं । १८. पुष्प पूजा में पुष्प की पंखुड़ियां तोड़कर न चढ़ायें। १९. अंग पूजा के अतिरिक्त, धूप, दीप, चामर आदि सभी मूल गभारे के बाहर रहकर करें। २०. गभारे में भक्तामर-वृहदशान्ति आदि स्तोत्र बोलते हुए पूजा नहीं होती है । नव अंग की पूआ के दोहे बोलम चाहिये । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034526
Book TitleJain Shasan Samstha ki Shastriya Sanchalan Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarlal Munot
PublisherShankarlal Munot
Publication Year1966
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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