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________________ श्री जैन शासन संस्था १५. गुरु द्रव्य ( साधु साध्वी वैयावच्च ) द्वारा साधुसाध्वी यावच्च करने से श्रावक-श्राविका के वैयावच्च के स्व कर्तव्य ( निजी फर्ज ) को ठेस लगती है । वह कर्तव्यच्युत हो जाता है। १६. ज्ञान द्रव्य (ज्ञात खाता) से आई हुई पुस्तक या शास्त्र का उपयोग श्रावक नहीं कर सकता है । इसी प्रकार पाठशाला के शिक्षक-बालक भी उपयोग नहीं कर सकते हैं । १७. उपाश्रय श्रावकों के धर्माराधन करने के लिये है न कि सामाजिक कार्य (जन्म-विवाह-मत्यु आदि) करके आय प्राप्त करने के लिये। १८. दानदाता (उपाश्रय 'या धर्म स्थान के संस्थापक) उपाश्रय हेतु दान देते है उनमें सामाजिक कार्य करना-करवाना, करने वाले का अनुमोदन करना अथवा नहीं रोकना, यह दानदाता के प्रति विश्वासघात होता है । १९. आयंबिल खाता, तपस्वीयों के पारणे का द्रव्य, स्वामीतात्सल्य, सार्मिक भक्ति आदि धर्म द्रव्य का उपयोग विद्यालय, चिकित्सालय, निर्धन सहायता हेतु नहीं कर सकते हैं । २०. जीव दया या पांजरापोल की रकम सात क्षेत्र में नहीं वापर सकते हैं। २१.साधु काल धर्म (देवलोक) अथवा दीक्षा की आप देव द्रव्य या साधु वैहावच्च में वापरना । २२. साधु-साध्वी को तपस्या के पारणा को बोलो बोलना अशास्त्रीय है। २३. धर्म द्रवम को वहीवट (व्यवस्था) साधक द्रव्य-क्षेत्र Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034526
Book TitleJain Shasan Samstha ki Shastriya Sanchalan Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarlal Munot
PublisherShankarlal Munot
Publication Year1966
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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