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________________ ३२] श्री जैन शासन संस्था में प्रविष्ट न होवे इस कारण से जैनत्व घराने वाले प्रत्येक व्यक्ति का यह कर्तव्य है कि धर्म की बाबत में इस अनिष्ट संक्रामक रोग को भंयकरता समझकर इससे दूर रहना चाहिये । १०. विशेष में श्वे मू० संघ में गर्भ से बालक बालिका या प्रत्येक पुरुष स्त्री व्यक्ति श्रावक, श्राविका के रूप में श्री जैन श्वे. मू० परम्परा के अनुयायी (सभ्य) हैं। इससे मताधिकार जैसी वस्तु की कल्पना भी जैन शासन में अनर्थकारी है। योग्य व्यक्ति शासन शिस्त की मर्यादा में अपने क्षयोपशम माफिक हित बुद्धि से अभिप्राय पेश कर सकता है। श्री जैन शासन में एक महान् आचार्य का श्री जैन सकल संघ के हित में और संचालन में पूर्ण सहानुभूति वाले सक्रिय प्रयासों का जो स्थान है, वही स्थान प्रत्येक जैन व्यक्ति का भी है, जिससे प्रभु आज्ञा अनुसार योग्य रूप में अपना अभिप्राय देने का सबको अधिकार है। धावक के छोटे बच्चे (पूर्व भव का समकिती होवे या आठवें वर्ष में प्राप्त करें) के समयक्त्व और श्री गौतम स्वामीजी महाराज जैसे गणधर भगवन्त के समयक्त्त में अन्तर नहीं। इससे मताधिकार जैसी कोई चीज जैन शासन में है ही नहीं, बल्कि भारतीय आर्य संस्कृति में ही नहीं है। यह देन पाश्चात्य संस्कृति एवं विदेशीय शासनकर्ताओं की थी, उसका वर्तमान में अन्धानुकरण करने से डेमोक्रेसी के नाम से भारत में अनर्थ को परम्परा बढ़ रही है। इससे प्रत्येक समझदार व्यक्ति को सावधान होकर इस अनर्थकारी पद्धति से बचने बचाने की पूरी आवश्यकता है। MYTM Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034526
Book TitleJain Shasan Samstha ki Shastriya Sanchalan Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarlal Munot
PublisherShankarlal Munot
Publication Year1966
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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