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________________ श्री जैन शासन संस्था २५] क्षेत्र की रकम की आमद होवे या भैद व आदि वृद्धि होवे वह रकम उस-उस खाते व क्षेत्र में जमा करके उसी खाते में खर्च होना चाहिए। अपने स्थल की आवश्यकता से ज्यादा होवे तो वह द्रव्य अन्य किसी भी स्थान में आशातना टाल कर उसी क्षेत्र के लिये भक्ति रूप से देना यह जैन शासन को अनुशासन और मर्यादा है । नोट :- यहां पर जिन-जिन क्षेत्रों-खातों का निर्देश किया है वह सामान्य रूप से जनरल बातों का किया है । इसके अलावा और भी खाते और बहुत प्रकार के विधि-निषेध की आज्ञाएं शास्त्रों में हैं, उनका उत्सर्ग अपवाद भी है। वहीवटदार, कार्यवाहक, शास्त्राज्ञा और तद्नुसार गुरु आज्ञा पाकर वहीवट वर्तन किया करें यही योग्य है । विशेष जानकारी १. सात क्षेत्रादि गुणी -गुण आराधना के धार्मिक क्षेत्रों में नीचे के क्षेत्र का द्रव्य ऊपर के क्षेत्र में काम में आ सकता है । २. सांसारिक सखावती द्रव्य धार्मिक क्षेत्र में खर्च हो सकता है । ३. ऊपर के क्षेत्र का नीचे के क्षेत्र में न जा सके जैसे [१] देवद्रव्यजनप्रतिमा [२] जिनमंदिर [३] धार्मिक ज्ञान [४] साधु [५] साध्वी [६] श्रावक [७] श्राविका । नम्बर एक क्षेत्र का द्रव्य एक में ही खर्च हो सके, दूसरे में नहीं । नम्बर दो का ऊपर के एक नम्बर में जावे नीचे [३], [४] [५], [६], [७] क्षेत्र में खर्च नहीं किया जा सकता। इसी प्रकार सब क्षेत्रों के लिए समझना । ४. धार्मिक क्षेत्र का द्रव्य सखावती क्षेत्र में परिवर्तन नहीं हो सकता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034526
Book TitleJain Shasan Samstha ki Shastriya Sanchalan Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarlal Munot
PublisherShankarlal Munot
Publication Year1966
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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