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________________ श्री जैन शासन संस्था देने पर भी नहीं माने और परम्परा बिगड़ने का भय खड़ा हो तो श्री संघ शासन की मर्यादाओं को कायम रखने के लिए उसे सड़े पान के माफिक संघ से बाहर कर अनादिकाल से चली आती सर्व प्राणी हितकर शासन संघ की प्रणाली को अबाधित रूप से कायम रखना चाहिए । १६. शासन संचालन किस आधार पर : श्री तीर्थकर स्थापित जैन शासन (संस्था) का संचालन तथा श्री संघ के अनुशासन के बहुत नियम श्री आचार दिनकर, श्री आचार प्रदीप, श्री आचारोपदेश, श्री गुरुतत्वविनिश्चय, आदि में एवं छेदसूत्र, श्री व्यवहार, श्री वृहत्कल्प सूत्र, श्री महानिशीथ सूत्र श्री निशीथ सूत्र और द्रव्य सप्ततिका आदि में विविध भांति के भिन्न २ द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से सुसंगत वणित मिलते हैं। १७. संचालकों को कक्षाएँ : श्री जैन शासन के संचालन में सर्व प्रथम आज्ञा प्रधानता श्री तीर्थकर भगवतों की है फिर उनके बाद गणधर भगवंतों, प्रधान आचार्य महाराज, गौण अधिकार रखने वाले आचार्य महाराज, फिर गणी, गणावच्छेदक, वृषभ गीतार्थ मुनि, पन्यास आदि क्रमशः सब नोट-द्रव्य सप्ततिका गामा : अहिंगारी य गिहत्थो, सुहसयणो वित्तमं जुओ कुलजो । अख्खुद्दो धिइबलिओ, मइमं तह धम्मरागाय ॥ ५ ॥ गुरुपूजा करणरई, सुस्सूसाई गुणसंगओ चेव । णायाहिगयविहा णस्स, घणि प्रमाणापहाणो य ॥ ६॥ __ मग्गाणुसारिपायं, सम्मविट्टी तहेव अणु विरई । ए ए हिगारिणो इह, विसेसओ धम्मसथ्यमि ॥७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034526
Book TitleJain Shasan Samstha ki Shastriya Sanchalan Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShankarlal Munot
PublisherShankarlal Munot
Publication Year1966
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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