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________________ ७४ जैनसम्प्रदायशिक्षा। नारी पुरुष न आदरै, तसंकर बांध्यो जाय ॥ तेजी ताजैणणो खेमैं, कहु चेला किण दाय ॥ ११ ॥ गुरुजी तेज नहीं ॥ भोजन स्वाद न ऊपजो, संगो रिसीयां जाय ॥ कन्ते कोमण परिहरी, कहु चेला किण दाय ॥ १२ ॥ गुरुजी रस नहीं॥ वैद मान पायो नहीं, सींगंण नहिँ सुलजाय ॥ कन्ते कामण परिहरी, कहु चेला किण दाय ॥ १३ ॥ गुरुजी गुंण नहीं॥ हीरो" झांखो पड़ गयो, बाग गयो वीलाय ॥ दरपणे में दीसै" नहीं, कहु चेला किण दाय ॥ १४ ॥ गुरुजी पाणी नहीं ॥ छींपा घर सोभा नहीं, कार्मण पीहर जाय ॥ छकुल पाँघ नहिं मोलँदै, कहु चेला किण दाय ॥ १५ ॥ गुरुजी रंग नहीं॥ गहुँ सूखै हल हू थकै, बाँटै रथ नहिं जाय ॥ चौलन्तो ढीलो चलै, कहु चेला किण दाय ॥ १६ ॥ गुरुजी जूतो नहीं॥ चौपड़ रमे न चौहटें, तीतर जाला जाय ॥ राज द्वार आदर नहीं, कहु चेला किण दाय ॥ १७ ॥ गुरुजी पासो नहीं ॥ ५-स्त्री ॥ २-चोर ॥ ३-घोड़ा ॥ ४-चावुक ।। ५-सहता है ॥ ६-तेज (तीनों में समान ही जानो) ।। ७-जायका ।। ८-पैदा हुआ ॥ ९-संबंधी ॥ १०-गुस्से में होकर ।। ११-स्वामी ॥ १२-स्त्री ॥ १३-छोड़ दी ॥ १४-नमक, प्रीति और रति का सुख ॥ १५-हकीम ॥ १६-इज्जत ॥ १७-तिल ॥ १८-नहीं ॥ १९-सुलता है ।। २०-पहिले और तीसरे में गुण दूसरे में घुन (जन्तु ) ॥ २१-हीरा ॥ २२-मैला ॥ २३-बिगड़ गया ।। २४-शीशा ।। २५-दीखता॥ २६-सान, जल और आव ॥ २७-वस्त्र छापनेवाला ॥ २८-रौनक । २९-स्त्री ॥ ३०-मायका ॥ ३१-शौकीन ॥ ३२-पगड़ी ॥ ३३-मोल लेता है ॥ ३४-रंगनेका रंग, प्रीति और रंग ॥ ३५-गेहूं ॥ ३६-मार्ग में ॥ ३७-चलता हुआ ॥ ३८-सुस्त ।। ३९-जुता हुआ खेत, जोता हुआ बैल और जूता ॥ ४०-एक खेल ॥ ४१-खेलता है । ४२-वाजार में ॥ ४३-जालवृक्ष ॥ ४४-खेलने का पासा, जाल और मुलाकात ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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