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________________ पञ्चम अध्याय । ३२४-हे पूछनेवाले ! तेरे मकान और जमीन की वृद्धि होगी, तू व्यापार में सम्पत्ति को पावेगा तथा जो तू ने मन में विचार किया है यद्यपि वह सब सिद्ध तो हो जावेगा परन्तु तेरे मन में कोई खटका तथा चिन्ता है, इस बात की सत्यता का यह प्रमाण है कि तेरे शिर में जखम का निशान है, अथवा तू रात को लड़ाई कर के सोया होगा। ३३१-हे पूछनेवाले! तू अपने चित्त में काम, कुटुम्ब, घर, सम्पत्ति और धनकी वृद्धि, प्रजा से लाभ तथा वस्त्रलाभ आदि का विचार करता है। सो तू कुलदेव तथा गुरु की भक्ति कर, ऐसा करने से तुझ को अच्छा लाभ होगा, इस बात का पुरावा यह है कि-तू स्वप्न में गाय को देखेगा । ३३२-हे पूछनेवाले! तुझ को तकलीफ है, तेरे भाई और मित्र भी तुझ से बदल कर चल रहे हैं तथा जो तू अपने मन में विचार करता है उस तरफ से तुझे लाभ का होना नहीं दीखता है, इस लिये तू देशान्तर (दूसरे देश) को चला जा, वहाँ तुझे लाभ होगा, तू आम बात में पराये धन से वर्ताव करता है, इस बात की सत्यता का यह प्रमाण है कि-तू स्वम में भाई तथा मित्रों को देखेगा। ३३३-हे पूछनेवाले! तू अपने मन के विचारे हुए फल को पावेगा, तुझे व्यवहार की तथा भाई और मित्रों की चिन्ता है, सो ये सब तेरे विचारे हुए काम सिद्ध होंगे। ३३४-हे पूछनेवाले ! तू चिन्ता को मत कर, तेरी अच्छे आदमी से मुलाकात होगी, अब तेरे सब दुःख का नाश हुआ, तेरे विचारे हुए सब काम सफल होंगे। ३४१-हे पूछनेवाले ! तेरे मन में किसी पराये आदमी से प्रीति करने की इच्छा है सो तेरे लिये अच्छा होगा, तू घबड़ा मत, तुझे सुख होगा, धन का लाभ होगा तथा अच्छे आदमी से मुलाकात होगी। - ३४२-हे पूछनेवाले ! तेरे मन में पराये आदमी से मुलाकात करने की चिन्ता है, तेरे ठिकान की वृद्धि होगी, कल्याण होगा, प्रजा की वृद्धि तथा आरोग्यता होगी, इस बात का यह पुरावा है कि-तू स्वप्न में वृक्ष को देखेगा। ३४३-हे पूछनेवाले! तुझे वैरी की अथवा जिस किसी ने तेरे साथ विश्वासघात ( दगाबाजी ) किया है उस की चिन्ता है, सो इस शकुन से ऐसा मालूम होता है कि-तेरे बहुत दिन केश में बीतेंगे और तेरी जो चीज़ चली गई है वह पीछे नहीं आवेगी परन्तु कुछ दिन पीछे तेरा कल्याण होगा। ३४४-हे पूछनेवाले ! तेरे सब काम अच्छे हैं, तुझे शीघ्र ही मनोवान्छित (मन चाहा) फल मिलेगा, तुझे जो व्यापार की तथा भाई बन्धुओं की चिन्ता है वह सब मिट जावेगी, इस बात का यह पुरावा है कि तेरे शिर में घाव का चिह्न है, तू उद्यम कर अवश्य लाभ होगा। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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