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________________ पञ्चम अध्याय । ७२७ १३१-हे पूछनेवाले ! तुझे ठिकाने का लाभ, धन का लाभ तथा चित्त में चैन होगा, जो कुछ काम तेरा बिगड़ गया है वह भी सुधर जावेगा तथा जो कुछ चीज़ चोरी में गई है वह भी मिल जावेगी, इस बात का यह पुरावा है कि-तू ने स्वप्न में वृक्ष को देखा है अथवा देखेगा। १३२-हे पूछनेवाले ! जो काम तू ने विचारा है वह सब हो जावेगा, इस बात का यह पुरावा है कि-तेरी स्त्री के साथ तेरी बहुत प्रीति है। १३३-हे पूछनेवाले ! इस शकुन से तेरे धन के नाश का तथा शरीर में रोग होने का सम्भव है तथा तेरे किसी प्रकार का बन्धन है, जान के धोखे का खतरा है, तू ने भारी काम विचारा है वह बड़ी तकलीफ से पूरा होगा। १३४-हे पूछनेवाले ! तुझे राजकाज की तरफ की वा सर्कार की तरफ की अथवा सोना चाँदी की और परदेश की चिन्ता है, तू किसी दुशमन से जीतना चाहता है, यह सब बात धीरे २ तुझे प्राप्त होगी, जैसी कि तू ने विचारी है, अब हानि नहीं होगी, तेरे पाप कट गये, तू वीतराग देव का ध्यान धर, तेरे सब कार्य सिद्ध होंगे। १४१-हे पूछनेवाले ! तेरा विचार किसी व्यापार का है तथा तुझे दूसरी भी कोई चिन्ता है, इस सब कष्ट से छूट कर तेरा मङ्गल होगा, आज के सातवें दिन या तो तुझे कुछ लाभ होगा वा अच्छी बुद्धि उत्पन्न होगी। १४२-हे पूछनेवाले ! तेरे मन में धन और धान्य की अथवा घर के विषय की चिन्ता है, वह सब चिन्ता दूर होगी, तेरे कुटुम्ब की वृद्धि होगी, कल्याण होगा , सजनों से मुलाकात होगी तथा गई हुई वस्तु भी मिलेगी, इस बात का यह पुरावा है कि-तेरे घर में अथवा बाहर लड़ाई हुई है वा होगी। १४३-हे पूछनेवाले ! तेरे विचारे हुए सब काम सिद्ध होंगे, कल्याण होगा तथा लड़की का लाभ होगा, इस बात का यह पुरावा है कि-तू स्वप्न में किसी ग्राम में जाना देखेगा। १४४-हे पूछनेवाले ! तेरे सब कामों की सिद्धि होगी और तुजे सम्पत्ति मिलेगी इस बात का यह पुरावा है कि-तू अपने विचारे हुए काम को स्वम में देखेगा वा देवमन्दिर को वा मूर्ति को अथवा चन्द्रमा को देखेगा। २११-हे पूछनेवाले ! तू ने अपने मन में एक बड़ा कार्य विचारा है तथा तुझे धनविषयक चिन्ता है, सो तेरे लिये सब अच्छा होगा तथा प्यारे भाइयों की मुलाकात होगी, इस बात की सत्यता का प्रमाण यह है कि-तू ने स्वम में ऊँचे मकान पर पहाड़ पर चढ़ना देखा है अथवा देखेगा। २१२-हे पूछनेवाले ! तेरे सब बातों की वृद्धि होगी, मित्रों से मुलाकात होगी, संसार से लाभ होगा, विवाह करने पर कुलकी की वृद्धि होगी सथा सोना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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