________________
६०
जैनसम्प्रदायशिक्षा।
भास ॥ जैसे नृप लौव अतर, लेत सभाजन वास ॥६२ ॥ जो पावै अति उंच पद, ताको पतन निदान ॥ ज्यों तपि तपि मध्यान्ह लौं, अस्त होत है भान ॥ ६३ ॥ मूरख गुण समुझे नहीं, तौ न गुणी में चूक ॥ कहा भयो दिन को विभौ, देख्यो जो न उलूक ॥ ६४ ॥ विन स्वारथ कैसे सहै, कोऊ कडुवे बैन' ॥ लात खाय पुचकारिये, होय दुधारू धैन ॥ ६५ ॥ सुजान तजहिँ नहिँ सुजनता, कीन्हे हूँ अपार ॥ ज्यों चन्दन छेदै तेऊ, सुरभित करहि कुठार ॥ ६६ ॥ दुष्ट न छोड़े दुष्टता, पोषै राखै ओट ॥ सर्पहिँ कैसहुँ हित करो, चपै चलावै चोट ॥६७ ॥ होय बुराई से बुरो, यह कीन्हो निरधार ॥ खाई खेनगो और को, ताको कूप तयार ॥६८॥ अति ही सरल न हूजिये, देखो ज्यों वनराय ॥ सीधे सीधे छेदिये, बांको तरु बचि जाय ॥ ६९ ॥ बहुतन को न विरोधिये, निबल जानि बलवान ॥ मिलि भखि जाहिँ पिपीलिका, नौगहिँ नैग के मॉन ॥ ७० ॥ बहुत निबल मिलि बल करें, करें जु चाहैं सोय ॥ तृगण की डोरी करै, हस्ति हुँ बन्धन होय ॥ ७१ ॥ सुजन कुसङ्गति दोप तें, सज्जनता न तजन्त ॥ ज्यों भुजंगगण संगहू, चन्दन विष न धरन्त ॥ ७२ ॥ पड़ि संकट हु साधुजन, नेक न होत मलान ॥ ज्यों ज्यों कञ्चन ताइये, त्यों त्यों निरमल वान ॥७३॥ कन कन जोरे मन जुरै, काढ़े निबरै सोय । बूंद बूंद ज्यों घट भरै, टपकत रीतै सोय ॥ ७४ ॥ ऊंचे हु बैठे नहि लहै, गुण बिन बड़पन कोय ॥ बैट्यो देवल शिखर पर, वायस गरुड़ न होय ॥ ७५ ॥ सांच झंए निरणय कर, नीतिनिपुण जो होय ॥ राजहंस विन को करै, "क्षीर नीर को दोय ॥ ७६॥ दोषहिँ को उमहै गहै, गुण न गहै खललोक ॥ दियै रुधिर पर्यं ना पिय, लगी पयोधर जोंक ॥ ७७ ॥ भलो न होवै दुष्ट जन, भलो कहै जो कोय ॥ विष मधुरो मीठो लवण, कवे न मीठो होय ॥ ७८ ॥ एक उदेर एकहि समय, उपजत एक न होय ॥ जैसे कांटे बेर के, सीधे वांके दोय ॥७९॥ हरत देवता निबल अरु, दुर्बल ही के प्रान ॥ बाघ सिंह को छोड़ि के, लेन छोंगे बलिदान ॥ ८० ॥ उद्यम कबहुँ न छोड़िये पर आशा के मोद ॥ गागर कैसे फोरिये, उनयो देखि पयोद ॥ ८१ ॥ कारज धीरे होत है, काहे होत अधीर ॥ समय पाय तरुवर फलै, केत
१-मालूम होता है ॥ २-लगाता है ॥ ३-गन्ध, खुशबू ॥ ४-गिरना ।। ५-आखिरकार ।। ६-दो पहर ॥ ७-तक ॥ ८--सूर्य ॥ ९-प्रकाश, रोशनी ॥ १०-उल्ल, घुग्घू ।। ११-वचन ।। १२-दूध देने वाली ॥ १३-गाय ॥ १४-बुराई ।। १५-तो भी ॥ १६-सुगन्धित ॥ १७-कु ल्हाडा ॥ १८-दबने पर ॥ १९-निश्चय ।। २०--गद्रा।। २१-खो देगा ॥ २२-कुआ ॥ २३सीधा ॥ २४-टेड़ा ॥ २५-खा जाती हैं ॥ २६-चींटियां, कीडियां ॥ २७-हाथी को। २८-पर्वत ॥ २९-बराबर ॥ ३०-तिनकों का ढेर ॥ ३१-छोड़ते हैं ॥ ३२-सांपों का स मह।। ३३-दुःख ॥ ३४-अच्छे आदमी।। ३५-दुःखित ॥ ३६-सोना ॥ ३७-पूरा हो जाता है ॥ ३८-घड़ा ॥ ३९-पाता है ॥ ४०-मन्दिर ॥ ४१-चोटी ॥ ४२-कौआ ।। ४३-न्याय में चतुर । ४४-दृध ॥ ४५-पानी॥ ४६-चाव से ॥ ४७-दुष्ट जन ।। ४८खून ॥ ४९-दृध ॥ ५०-स्तन, थन ॥ ५१-पेट ॥ ५२-बकरा ॥ ५३-खुशी॥ ५४उमड़ा हुआ ॥ ५५-मेघ ।। ५६-कितना ही।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com