SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 726
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७१२ जैनसम्प्रदायशिक्षा । २- यदि उस दिन प्रातःकाल चन्द्र स्वर में जल तत्व चलता हो तो यह फल समझना चाहिये कि यह वर्ष अति श्रेष्ठ है अर्थात् इस वर्ष में बर्सात; भन्न और धर्म की अतिशय वृद्धि होगी तथा सब प्रकार से आनन्द रहेगा, इत्यादि । ३- यदि उस दिन प्रातःकाल सूर्य स्वर में पृथिवी अथवा जल तत्त्व चलता हो तो मध्यम अर्थात् साधारण फल समझना चाहिये । ४- यदि उस दिन प्रातःकाल चन्द्र स्वर में वा सूर्य स्वर में शेष ( अग्नि, वायु और आकाश ) तीन तत्व चलते हों तो उन का वही फल समझना चाहिये जो कि पूर्व मेष सङ्क्रान्ति के विषय में लिख चुके हैं, जैसे- देखो ! यदि सूर्य स्वर में अग्नि तत्व चलता हो तो जानना चाहिये कि - प्रजा में रोग और शोक होगा, दुर्भिक्ष पड़ेगा तथा राजा के चित्त में चैन नहीं रहेगा इत्यादि, यदि सूर्य स्वर में वायु तत्व चलता हो तो समझना चाहिये कि राज्य में कुछ विग्रह होगा और वृष्टि थोड़ी होगी, तथा यदि सूर्य स्वर में सुखमना चलता हो तो जानना चाहिये कि - अपनी ही मृत्यु होगी और छत्रभङ्ग होगा तथा कहीं २ थोड़े अन्न व घास आदि की उत्पत्ति होगी और कहीं २ बिलकुल नहीं होगी, इत्यादि । वर्षफल जानने की तीसरी रीति १- यदि माघ सुदि सप्तमी को अथवा भक्षयतृतीया को प्रातःकाल चन्द्र स्वर में पृथिवी तत्त्व वा जल तत्व चलता हो तो पूर्व कहे अनुसार श्रेष्ठ फल जानना चाहिये । २- यदि उक्त दिन प्रातःकाल अनि आदि तीन तत्व चलते हों तो पूर्व कहे अनुसार निकृष्ट फल समझना चाहिये । ३- यदि उक्त दिन प्रातःकाल सूर्य स्वर में पृथिवी तत्व और जल तत्त्व चलता हो तो मध्यम फल अर्थात् साधारण फल जानना चाहिये । ४- यदि उक्त दिन प्रातः काल शेष तीन तत्त्व चलते हों तो उन का फल भी पूर्व कहे अनुसार जान लेना चाहिये । अपने शरीर, कुटुम्ब और धन आदि के विचार की रीति । १- यदि चैत्र सुदि पड़िवा के दिन प्रातःकाल चन्द्र स्वर न चलता हो तो जानना चाहिये कि - तीन महीने में हृदय में बहुत चिन्ता और क्लेश उत्पन्न होगा । २- यदि चैत्र सुदि द्वितीया के दिन प्रातःकाल चन्द्र स्वर न चलता हो तो जान लेना चाहिये कि - परदेश में जाना पड़ेगा और वहाँ अधिक दुःख भोगना पड़ेगा । ३- यदि चैत्र सुदि तृतीया के दिन प्रातःकाल चन्द्र स्वर न चलता हो तो जानना चाहिये कि शरीर में गर्मी; पित्तज्वर तथा रक्तविकार आदि का रोग होगा । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy