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________________ ६८८ जैनसम्प्रदायशिक्षा | क्योंकि इस विद्या के ज्ञान से आगे होनेवाली बातों को मनुष्य अच्छे प्रकार से जान सकता है, इस विद्या के अनुसार जन्मपत्रिकायें भी बनती हैं जिन से अच्छे वा बुरे कर्मों का फल ठीक रीति से मालूम हो सकता है, परन्तु बात केवल इतनी है कि- जन्मसमय का लग्न ठीक होना चाहिये, वर्तमान में अन्य विद्याओं के समान इस विद्या की भी न्यूनता अन्य देशों की अपेक्षा मारवाड़ तथा गोढ़वाड़ आदि विद्याशून्य देशों में अधिक देखी जाती है, तात्पर्य यह है कि - विद्यारहित तथा अपनी २ यजमानी में उदरपूर्ति ( पेटभराई ) करने वाले ज्योतिषी लोगों को यदि कोई देखना चाहे तो उक्त देशों में देख सकता है, इस लेख से पाठक - वृन्द यह न समझें कि - उक्त देशों में ज्योतिष् विद्या के जान कर पण्डित बिलकुल नहीं हैं, क्योंकि उक्त देशों में भी मुख्य २ राजधानी तथा नगरों में यति सम्प्रदाय में तथा ब्राह्मण लोगों में कहीं २ अच्छे २ ज्योतिषी देखे जाते हैं; परन्तु अधिकतर तो ऊपर लिखे अनुसार ही उक्त देशों में ज्योतिषी देखने में आते हैं, इसी लिये कहा जाता है कि उक्त देशों में अन्य विद्याओं के समान इस विद्या की भी अत्यन्त न्यूनता है । इस विद्या को साधारणतया जानने की इच्छा रखनेवालों को उचित है किवे प्रथम तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण आदि बातों को कण्ठस्थ कर लेवें, क्योंकि ऐसा करने से उन को इस विद्या में आगे बढ़ने में सुगमता पड़ेगी, इस विद्या का काम प्रत्येक गृहस्थ को प्रायः पड़ता ही रहता है, इस लिये गृहस्थ लोगों को भी उचित है कि कार्य योग्य ( काम के लायक ) इस विद्या को भी अवश्य प्राप्त कर लें कि जिस से वे इस विद्या के द्वारा अपने कार्यों के शुभाशुभ फल को विचार कर उन में प्रवृत्त हो कर सुख का सम्पादन करें । आगे चल कर हम ज्योतिष की कुछ आवश्यक बातों को लिखेंगे, उन में सूर्य का उदय और अस्त तथा लग्न को स्पष्ट जानने की रीति, ये दो विषय मुख्यतया गृहस्थों के लाभ के लिये लिखे जावेंगे, क्योंकि गृहस्थ लोग पुत्रादि के जन्मसमय में साधारण ( कुछ पड़े हुए ) ज्योतिषियों के द्वारा जन्मसमय को बतला कर जन्मकुंडली बनवाते हैं, इस के पीछे अन्य देश के वा उसी देश के किसी विद्वान् ज्योतिषी से जन्मपत्री बनवाते हैं, इस दशा में प्रायः यह देखा जाता है कि बहुत से लोगों की जन्मपत्री का शुभाशुभ फल नहीं मिलता है तब वे लोग १- देखो! जोधपुर राजधानी में ज्योतिष् विद्या, जैनागम, मन्त्रादि जैनाम्नाय तथा सुभाषितादि विषय के पूर्ण ज्ञाता महोपाध्याय श्री जुहारमल जी गणी वर्तमान में ८० वर्ष की अवस्था के अच्छे विद्वान् हैं, इन के पास बहुत से ब्राह्मणों के पुत्र ज्योतिष विद्या को पढ़ कर निपुण हुए हैं तथा जोधपुर राज्य में पूर्व समय में ब्राह्मण लोगों में चण्डू जी नामक अच्छे ज्योतिषी हो चुके हैं, इन्हीं के नाम से एक पञ्चाङ्ग निकलता है जिस का वर्त्तमान में बहुत प्रचार है, इन की सन्तति में भी अच्छे २ विद्वान् तथा ज्योतिषी देखे जाते हैं ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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