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________________ पञ्चम अध्याय। ६८३ उक्त लेख से सर्व साधारण भी अब अच्छे प्रकार से समझ गये होंगे किसुसंगति तथा कुसङ्गति से मनुष्य का सुधार वा विगाड़ क्यों होता है, इस लिये अब इस विषय में लेखविस्तार की कोई आवश्यकता नहीं है । अब ऊपर के लेख से पाठकगण अच्छे प्रकार से समझ ही गये होंगे किमनुष्य के सुधार वा विगाड़ का द्वार केवल दूसरों के सदाचार वा दुराचार के अवलम्बन पर निर्भर है, क्योंकि-दूसरों के व्यवहारों को देख वा सुन कर मनुष्य के अन्तःकरण की चारों वृत्तियाँ क्रम से अपने भी तद्वत् (दूसरों के समान) कर्त्तव्य वा अकर्तव्य के विषय में अपना २ कार्य करने लगती हैं। __हाँ इस विषय में इतनी विशेषता अवश्य है कि जब दूसरे सत्पुरुषों के सदाचार का अनुकरण करते हुए मनुष्य के अन्तःकरण में सतोगुण का पूरा उद्भास हो जाता है तथा उस के द्वारा उत्कृष्ट (उत्तम) ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है तब उस की वृत्ति कुत्सित पुरुषों के व्यवहार की ओर नहीं झुकती है अर्थात् उस पर कुसङ्ग का प्रभाव नहीं होता है (क्योंकि सतोगुण के प्रकाश के आगे तमोगुण का अन्धकार उच्छिन्नप्राय हो जाता है) इसी प्रकार जब दूसरे कुत्सित पुरुषों के कुत्सिताचार का अनुकरण करते हुए मनुष्य के अन्तःकरण में तमोगुण का पूरा उद्भास हो जाता है तथा उस के द्वारा उत्कृष्ट अज्ञान की प्राप्ति हो जाती है तब उस की वृत्ति सत्पुरुषों के व्यवहार की ओर नहीं झुकती है अर्थात् सत्संग और सदुपदेश का उस पर प्रभाव नहीं होता है (क्योंकि तमोगुण की अधिकता से सतोगुण उच्छिन्नप्राय हो जाता है)। __ इस कथन से सिद्ध हो गया कि-प्रारम्भ से ही मनुष्य को दूसरे सत्पुरुषों के सच्चरित्रों के देखने सुनने तथा अनुभव करने की आवश्यकता है कि जिस से वह भी उन के सच्चरित्रों का अनुकरण कर सतोगुण की वृद्धि के द्वारा उत्कृष्ट ज्ञान को प्राप्त हो कर अपने जीवन के वास्तविक लक्ष्य को समझ कर निरन्तर उसी मार्ग पर चला जावे और मनुष्यजन्म के धर्म, अर्थ, काम और मोक्षरूपी चारों फलों को प्राप्त होवे। इस विषय में यह भी स्मरण रखना चाहिये कि-दूसरे सत्पुरुषों के वार्तमानिक ( वर्तमान काल के) सच्चरित्र मनुष्य पर उतना प्रभाव नहीं डाल सकते हैं जितना कि भूतकालिक ( भूत काल के ) डाल सकते हैं, क्योंकि वार्तमानिक सच्चरित्रों का फल आगामिकालभावी (भविष्यत् काल में होनेवाला) है, इस लिये उस विषय में मनुष्य का आस्मा उतना विश्वस्त नहीं होता है जितना कि भूतकाल के सच्चरित्रों के फल पर विश्वस्त होता है, क्योंकि-भूतकाल के सच्चरित्रों का फल उस के प्रत्यक्ष होता है (कि अमुक पुरुष ने ऐसा सच्चरित्र किया इस लिये उसे यह शुभ फल प्राप्त हुआ) इस लिये आवश्यक हुआ कि-मनुष्य को Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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