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________________ पञ्चम अध्याय। इस सभास्थापन के समय में जिस २ नगर के तथा जिस २ जाति के वैश्य प्रतिनिधि आये थे उन का नाम चौरासी न्यातों के वर्णन में लिखा हुआ समझ लेना चाहिये, अर्थात् चौरासी नगरों के प्रतिनिधि यहाँ आये थे, उसी दिन से उन की चौरासी न्यातें भी कहलाती हैं, पीछे देशप्रथा से उन में अन्य २ भी नाम शामिल होते गये हैं जो कि पूर्व दो कोष्ठो में लिखे जा चुके हैं। उस के बाद उक्त सभा किस २ समय पर तथा कितनी वार एकत्रित हुई और उस के ठहराव किस समय तक नियत रह कर काम में आते रहे, इस बात का पता लगाना यद्यपि अति कठिन बात है तथापि खोज करने पर उस का थोड़ा बहुत पता लगना कुछ असंभव नहीं है, परन्तु अनावश्यक समझ कर उस विषय में हम ने कोई परिश्रम नहीं किया, क्योंकि सभासम्बन्धी प्रायः ही की व्यवस्था से सब लोग निज २ कर्तव्यों का पालन करते थे, पञ्चायत ही की व्यवस्था से लूले लंगड़े अपाहिजों के पालन का प्रबन्ध होता था, पञ्चायत ही की व्यवस्था से दुष्काल के लिये अन्न आदि का प्रबन्ध होता था, पञ्चायत ही की व्यवस्था से परस्पर के झगड़ों का निबटेरा होता था, पञ्चायत ही की व्यवस्था से दुष्ट दुर्मतियों का शासन होता था, पञ्चायत ही की व्यवस्था से शत्रुओं के आक्रमण की दशा में ग्रामवासियों की रक्षा का प्रबन्ध होता था। हिन्दू राजाओं के दिनों में गाँवों की वे पञ्चायतें दृढ़ रह कर अपने उन प्रबन्धों से ग्रामवासियों की रक्षा करती थीं, मुसलमान राजाओं के दिनों में पञ्चायतों की वह रक्षाकारिणी शक्ति शिथिल नहीं होने पाई थी, अंग्रेमी अमलदारी की पहिली दशा में भी वह शक्ति सर्वथा टूटने नहीं पाई थी किन्तु अंग्रेजी अमलदारी पुष्ट होने पर गाँवों की पञ्चायतें अपनी सारी शक्ति का सौर के चरणों में कृष्णार्पण करने को लाचार हो कर महाकालके महागाल में समा गई, तब से अंग्रेजी सरकार उन पञ्चायतों के सर्वथा स्थानापन्न हो कर अवश्य ही दुट्ट दुर्गतियों का कथञ्चित् शासन कर रही है, शत्रुओं के आक्रमण के भय से लोगों को सर्वथा बचा रही है, परस्पर के झगड़ों का निबटेरा भी कर रही है, किन्तु उस से झगड़ों का निबटेरा कराने में प्रायः दोनों झगड़ीलों का दिवाला निकल रहा है और पञ्चायत की अन्यान्य शक्तियों का जैसा सद्व्यवहार अंग्रेजी सरकार कर रही है सो तो हमारे सभी देशवासी नस नस में अनुभव कर रहे हैं। ___ अन्नहीनों के लिये अन्न की व्यवस्था अंग्रेजी सरकार नहीं कर सकती है, दुष्काल के लिये अन्न की व्यवस्था करा रखना अंग्रेजी सरकार से हो नहीं सकता है, क्योंकि कि गाँवों के निवासी अपनी पञ्चायतों के जिस प्रकार सर्वस्व थे उस प्रकार हम भारतवासी अंग्रेजी सरकार के सर्वस्व नहीं हो सकते, अंग्रेजी सर्कार का अपना देश भी है, अपने देश की, अपनी जातिवाली अन्नहीन प्रजा का पालन भी उस को करना है, उस प्रजा के पालन की लालसा लिये रह कर वह हमारी पञ्चायतों की भाँति किसी दशा में भी हमारी रक्षा नहीं कर सकती है, इसी से पंचायतों के बने रहने के दिनों की भाँति हमारी रक्षा नहीं हो रही है, हमारे जो अगणित देशवासी भूखों तड़फ २ कर मर चुके हैं उस का एक मात्र कारण हमारी गाँवों की पंचायतो की भांति सरकार के द्वारा हमारी रक्षा न होना ही है, सो यदि हम को जीना र गाँवों की उन पंचायतों का निर्माण करना है, वैसी ही शक्तिशाली रक्षाकारिणी पंचायतों का निर्माण ग्राम ग्राम में पुनवार विना किये कदापि हमारी रक्षा नहीं होगी" ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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