SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 686
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६७२ जैनसम्प्रदायशिक्षा। सं. नाम न्यात सं. नाम न्यात सं. नाम न्यात सं. नाम न्यात २५ हरसौरा ४२ सारेड़वाल . ५९ खंडवरत ७६ जनौरा २६ दसौरा ४३ मॉडलिया ६. नरसिया ७७ पहासया २७ नाछेला ४४ अडालिया ६१ भवनगेह ७८ चकौड़ २८ टंटारे ४५ खरिन्द्र ६२ करवस्तन ७९ वहड़ा २९ हरद ४६ माया ६३ आनंदे ८. धवल ४७ अष्टवार ६४ नागौरी ८१ पवारछिया ४८ चतुरथ ६५ टकचाल ८२ बागरौरा ३२ नौटिया ४९ पञ्चम ६६ सरडिया ८३ तरोड़ा ३३ चौरडिया ५० वपछवार ६७ कमाइया ८४ गादौड़िया ३४ मूंगड़वाल ५१ हाकरिया ६८ पौसरा ८५ पितादी ३५ धाकड़ ५२ कँदोइया ६९ भाकरिया ८६ बधेरवाल ३६ वौगारा ५३ सौनैया ७० वदवइया ८७ बूढेला ३७ गौगवार ५४ राजिया ७१ नेमा ८८ कटनेरा ३८ लाड ५५ वडेला ७२ अस्तकी ८९ सिँगार ३९ अवकथवाल ५६ मटिया ७३ कारेगराया ९० नरसिंघपुरा ४. विदियादी ५७ सेतवार ७४ नराया ९१ महता ४१ ब्रह्माका ५८ चक्कचपा ७५ मौड़मॉडलिया . एतद्देशीय समस्त वैश्य जाति की पूर्वकालीन सहानुभूति का दिग्दर्शन। विद्वानों को विदित हो होगा कि-पूर्व काल में इस आर्यावर्त देश में प्रत्येक नगर और प्रत्येक ग्राम में जातीय पञ्चायतें तथा ग्रामवासियों के शासन और पालन आदि विचार सम्बन्धी उन के प्रतिनिधि यों की व्यवस्थापक सभायें थीं, जिन के सत्प्रबन्ध ( अच्छे इन्तिजाम) से किसी का कोई भी अनुचित वर्ताव नहीं हो सकता था, इसी कारण उस समय यह आर्यावर्त सर्वथा आनन्द मङ्गल के शिखर पर पहुँचा हुआ था। प्रसंगवशात् यहां पर एक ऐतिहासिक वृत्तान्त का कथन करना आवश्यक समझ कर पाठकों की सेवा में उपस्थित किया जाता है, आशा है कि-उस का अवलोकन कर प्राचीन प्रथा से विज्ञ होकर पाठकगण अपने हृदयस्थल में पूर्व. कालीन सद्विचारों और सद्वर्तावों को स्थान देंगे, देखिये-पद्मावती नगरी में एक धनाढ्य पोरवाल ने पुत्रजन्ममहोत्सव में अपने अनेक मित्रों से सम्मति ले कर एक वैश्यमहासभा को स्थापित करने का विचार कर जगह २ निमन्त्रण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy