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________________ पञ्चम अध्याय । ६५३ __दो एक लेख हमारे देखने में ऐसे भी आये हैं जिन में पोरवालों को प्रतिबोध देनेवाला जैनाचार्य श्रीहरिभद्र सूरि जी महाराज को लिखा है, परन्तु यह बात बिलकुल गलत सिद्ध होती है, क्योंकि श्री हरिभद्र सूरि जी महाराज का स्वर्गवास विक्रम संवत् ५८५ ( पाँच सौ पचासी) में हुआ था और यह बात बहुत से ग्रन्थों से निर्धम सिद्ध हो चुकी है, इस के अतिरिक्त-उपाध्याय श्री समयसुन्दर जी महाराजकृत शेत्रुञ्जय रास में तथा श्री वीरविजय जी महाराज कृत ९९ प्रकार की पूजा में सोलह उद्धार शेत्रुञ्जय का वर्णन किया है, उस में विक्रम संवत् १०८ में तेरहवाँ उद्धार जावड़ नामक पोरवाल का लिखा है, इस से सिद्ध होता है किविक्रम संवत् १०८ से पहिले ही किसी जैनाचार्य ने पोरवालों को प्रतिबोध देकर उक्त नगरी में उन्हें जैनी बनाया था। सूचना-इस पोरवाल वंश में-विमलशाह, धनाशाह, वस्तुपाल और तेजपाल आदि अनेक पुरुष धर्मज्ञ और अनर्गल लक्ष्मीवान् हो गये हैं, जिन का नाम इस संसार में स्वर्णाक्षरों (सुनहरी अक्षरों) में इतिहासों में संलिखित है, इन्हीं का संक्षिप्त वर्णन पाठकों के ज्ञानार्थ हम यहाँ लिखते हैं: पोरवाल ज्ञातिभूषण विमलशाह मन्त्री का वर्णन । गुजरात के महाराज भीमदेव ने विमलशाह को अपनी तरफ से अपना प्रधान अधिकारी अर्थात् दण्डपति नियत कर आबू पर भेजा था, यहाँ पर उक्त मन्त्री १-इन्हों ने मुल्क गोढवाड़ में श्री भादिनाथ स्वामी का एक मनोहर मन्दिर बनवाया था (जो कि सादरी से तीन कोश पर अभी राणकपुर नाम से प्रसिद्ध है), इस मन्दिर की उत्तमता यहाँ तक प्रसिद्ध है कि-रचना में इस के समान दूसरा मन्दिर नहीं माना जाता है, कहते हैं कि इस के बनवाने में ९९ लाख स्वर्ण मोहर का खर्च हुआ था, यह बात श्री समयसुन्दर जी उपाध्याय ने लिखी है ॥ २-आबू और चन्द्रावती के राजकुटुम्बजन अणहिलवाड़ा पट्टन के महाराज के माण्डलिक थे, इन का इतिहास इस प्रकार है कि-यह वंश चालवय वंश का था. इस वंश लिखे हुए लोगों ने इस प्रकार राज्य किया था कि-मूलराज ने ईस्वी सन् ९४२ से ९९६ पर्यन्त, चामुण्ड ने ईस्वी सन् ९९६ से १०१० तक, वल्लभ ने ६ महीने तक, दुर्लभ ने ईस्वी सन् २०१० से १०२२ तक ( यह जैनधर्मी था), भीमदेव ने ईस्वी सन् १०२२ से १०६२ तक, इस की बरकरारी में धनराज आबू पर राज्य करता था तथा भीमदेव गुजरात देश पर राज्यशासन करता था, उस समय मालवे में धारा नगर में भोजराज गद्दी पर था, आबू के राजा धनराजने अणहिल पट्टन के राजवंश का पक्ष छोड़ कर राजा भोज का पक्ष किया था, इसी लिये भीमदेब ने अपनी तरफ से विमलशाह को अपना प्रधान अधिकारी अर्थात् दण्डपति नियत कर आबू पर भेजा था और उसी समय में विमलशाह ने श्री आदिनाथ का देवालय बनवाया था, भीमदेव ने धार पर भी आक्रमण किया था और इन्हीं की बरकरारी में गजनी के महमूद ने सोमनाथ (महादेव) का मन्दिर लूटा था, इस के पीछे गुजरात का राज्य कर्ण ने ईस्वी सन् १०६३ से १०९३ तक किया, जयासिंह अथवा सिद्धराज ने ईस्वी सन् १०९३ से ११४३ तक राज्य किया ( यह जयसिंह चालुक्य वंश में एक बड़ा तेजस्वी और धुरन्धर पुरुष हो गया है), इस के पीछे कुमारपाल ने ईस्वी सन् ११४४ से ११७३ तक राज्य किया (इस ने जैनाचार्य श्री हेमचन्द्र जी सूरि से जैन धर्म का ग्रहण किया था, उस समय चन्द्रावती और आबू पर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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