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________________ पञ्चम अध्याय। ६४७ कहा कि-"यहां पर किस की साख हलवावें, यहाँ तो कोई नहीं है, हाँ यह एक लोकैड़ी तो खड़ी है, तुम कहो तो इस की साख डलवा दें" सेठ ने कहा कि"अच्छा इसी की साख डलवा दो" बस लुटेरों ने लोंकड़ी की साख लिख दी और सेठ ने गहना आदि जो कुछ सामान अपने पास में था वह सब अपने हाथ से लुटेरों को दे दिया तथा कागज लेकर वहाँ से चला आया, दो तीन वर्ष बीतने के बाद वे ही लुटेरे किसी साहूकार का माल लूट कर उसी नगर में बेचने के लिये आये और सेठ ने ज्यों ही उन को बाजार में देखा त्यों ही पहिचान कर उन का हाथ पकड़ लिया और कहा कि-"व्याजसमेत हमारे रुपये लाओ" लुटेरे बोले कि-"हम तो तुम को पहिचानते भी नहीं हैं, हमने तुम से रुपये कब लिये थे?" लुटेरों की इस बात को सुन कर सेठ जोर में आ गया, क्योंकि वह जानता था कि-यहाँ तो बाजार है, यहाँ ये मेरा क्या कर सकते हैं, (किसी कवि ने यह दोहा सत्य ही कहा है कि-'जंगल जाट न छेड़िये, हाटाँ बीच किराड़ ॥ रंगड़ कदे न छेड़िये, मारे पटक पछाड़' ॥१॥) निदान दोनों में खूब ही हुजत (तकरार) होने लगी और इन की हुज्जत को सुन कर बहुत से साहूकार आकर इकठे हो गये तथा सेठ का पक्ष करके वे सब लुटेरों को हाकिम के पास ले गये, हाकिम ने सेठ से रुपयों के मांगने का सबूत पूछा, इधर देरी ही क्या थी-शीघ्र ही सेठ ने उन ( लुटेरों) के हाथ की लिखी हुई चिठ्ठी दिखला दी, तब हाकिम ने लुटेरों से पूछा कि-"सच २ कहो यह क्या बात है" तब लुटेरों ने कहा कि"साहब ! सेठ ने यह चिट्ठी तो आप को दिखला दी परन्तु इस (सेठ) से यह पूछा जावे कि इस बात का साक्षी (साखी वा गवाह) कौन है ?" लुटेरों की बात को सुनते ही (हाकिम के पूछने से पहिले ही) सेठ बोल उठा कि-"मिनी" यह सुन कर लुटेरे बोले कि-"हाकिम साहब ! बाणियो झूठो है, सो लोंकड़ी ने मिन्नी कहे छे" यह सुन कर हाकिम ने उस खत को उठा कर देखा, उस में लोकड़ी की साख लिखी हुई थी, बस हाकिम ने समझ लिया कि-बनिया सच्चा है, परन्तु उपहास के तौर पर हाकिम ने सेठ से धमका कर कहा कि-"अरे ! लोकड़ी को मिन्नी कहता है" सेठ ने कहा कि-"मिन्नी और लोंकड़ी में के फरक है ? मिन्नी २ सात वार मिन्नी" अस्तु, हाकिम ने उन लुटेरों से कागज़ में लिखे अनुसार सब रुपये सेठ को दिलवा दिये, बस उसी दिन से सब लोग सेठ को 'मिनी' कहने लगे और उस की औलाद वाले भी मिन्नी कहलाये। ८-सिंगी-पहिले ये जाति के नन्दवाणे ब्राह्मण थे और सिरोही के ढेलड़ी १-लोंकड़ी को मारवाड़ी बोली में जंगली मिन्नी (बिल्ली) कहते हैं ॥ २-"लोंकड़ी ने मिन्नी कहे छे” अर्थात् लोंकड़ी को मिन्नी बतलाता है ।। ३-"के फरक है" अर्थात् क्या भेद है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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