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________________ पञ्चम अध्याय। ६२५ लेकर उस ने मालव और गुजरात देश को पुनः बादशाह को वापिस दे दिया, उस समय राना जी ने सगर की इस बुद्धिमत्ता को देख कर उसे मन्त्रीश्वर का पद दिया और वह (सगर) देवलवाड़े में रहने लगा तथा उस ने अपनी बुद्धिमत्ता से कई एक शूरवीरता के काम कर दिखलाये । सगर के बोहित्थ, गङ्गदास और जयसिंह नामक तीन पुत्र थे, इन में से सगर के पाट पर उस का बोहित्थं नामक ज्येष्ठ पुत्र मन्त्रीश्वर होकर देवलवाड़े में रहने लगा, यह भी अपने पिता के समान बड़ा शूरवीर तथा बुद्धिमान् था । बोहित्थ की भार्या वहरंगदे थी, जिस के श्रीकरण, जेसो, जयमल्ल, नान्हा, भीमसिंह, पदमसिंह, सोम जी और पुण्यपाल नामक आठ पुत्र थे और पद्माबाई नामक एक पुत्री थी, इन में से सब से बड़े श्रीकरण के समधर, वीरदास, हरिदास और ऊध्रण नामक चार पुत्र हुए। ___ यह (श्रीकरण) बड़ा शूरवीर था, इस ने अपनी भुजाओं के बल से मच्छेन्द्रगढ़ को फतह किया था, एक समय का प्रसंग है कि-बादशाह का खजाना कहीं को जा रहा था उस को राना श्रीकरण ने लूट लिया, जब इस बात की खबर बादशाह को पहुँची तब उस ने अपनी फौज को लड़ने के लिये मच्छंद्रगढ़ पर भेज दिया, राना श्रीकरण बादशाह की उस फौज से खूब ही लड़ा परन्तु आखिरकार वह अपना शूरवीरत्व दिखला कर उसी युद्ध में काम आया, राना के काम आ जाने से इधर तो बादशाह की फौज ने मच्छेन्द्रगढ़ पर अपना कब्जा कर लिया, उधर राना श्रीकरण को काम आया हुआ सुन कर राना की स्त्री रतनादे कुछ द्रव्य (जितना साथ में चल सका) और समधर आदि चारों पुत्रों को लेकर अपने पीहर (खेड़ीपुर) को चली गई और वहीं रहने लगी तथा अपने पुत्रों को अनेक प्रकार की कला और विद्या को सिखला कर निपुण कर दिया, विक्रमसंवत् १३२३ (एक हजार तीन सौ तेईस) के आषाढ़ वदि २ पुष्य नक्षत्र गुरुवार को खरतरगच्छाधिपति जैनाचार्य श्रीजिनेश्वर सूरि जी महाराज विहार करते हुए वहाँ (खेड़ीपुर में) पधारे, नगर में प्रवेश करने के समय महाराज को बहुत उत्तम शकुन हुआ, उस को देख कर सूरिजी ने अपने साथ के साधुओं से कहा कि"इस नगर में अवश्य जिनधर्म का उद्योत होगा", चौमासा अति समीप था इस लिये आचार्य महाराज उसी खेड़ीपुर में टहर गये और वहीं चौमासे भर रहे, एक दिन रात्रिमें पद्मावती देवी ने गुरु से कहा कि-"प्रातःकाल बोहित्य के पोते चार राजकुमार व्याख्यान के समय आवेंगे और प्रतिबोध को प्राप्त होंगे", निदान ऐसा ही हुआ कि उस के दूसरे दिन प्रातःकाल जब आचार्य महाराज दया के विषयमें १-बोहित्थ ने चित्तौड़ के राना रायमल्ल की सहायता में उपस्थित हो कर बादशाह से युद्ध किया था तथा उसे भगा दिया था परन्तु उस युद्ध में ग्यारह सौ सोनहरी बंध से काम आया था। ५३ जै० सं० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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