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________________ चतुर्थ अध्याय। ५५१ १७-दश से वीस मिनिम (बूंद) तक चन्दन के तेल को मिश्री में, अथवा बतासे में डाल कर सबेरे और शाम को अर्थात् दिन में दो वार कुछ दिन तक लेना चाहिये, यह (चन्दन का तेल) बहुत अच्छा असर करता है। १८-पिचकारी-जिस समय ऊपर कही हुई दवाइयां ली जाती हैं उस समय इन के साथ इन्द्रिय के भीतर पिचकारी के लगाने का भी क्रम अवश्य होना चाहिये, क्योंकि-ऐसा होने से विशेष फायदा होता है। पिचकारी के लगाने की साधारण रीति यही है कि-काच की पिचकारी को दवा के पानी से भर कर उस (पिचकारी) के मुख को इन्द्रिय में डाल देना चाहिये तथा एक हाथ से इन्द्रिय को और दूसरे हाथ से पिचकारी को दबाना चाहिये, जब पिचकारी खाली होजावे (पिचकारी का पानी इन्द्रिय के भीतर चला जावे ) तब उस को शीघ्र ही बाहर निकाल लेना चाहिये और दवा को थोड़ी देर तक भीतर ही रहने देना चाहिये अर्थात् इन्द्रिय को थोड़ी देर तक दबाये रहना चाहिये कि जिस से दवा बाहर न निकल सके, थोड़ी देर के बाद हाथ को छोड़ देना चाहिये (हाथ को अलग कर लेना चाहिये अर्थात् हाथ से इन्द्रिय को छोड़ देना चाहिये) कि जिस से दवा का पानी गर्म होकर बाहर निकल जावे। पिचकारी के लगाने के उपयोग (काम) में आने वाली दवाइयां नीचे लिखी जाती हैं: १९-सलफोकार बोलेट आफ जिंक २० ग्रेन तथा टपकाया हुआ (फिल्टर आदि क्रिया से शुद्ध किया हुआ) पानी ४ औंस, इन दोनों को मिला कर ऊपर लिखे अनुसार पिचकारी लगाना चाहिये। २०-लेड वाटर ३० से ४० मिनिम, जस्त का फूल १ से ४ ग्रेन, अच्छा मोरथोथा १ से ३ ग्रेन तथा पानी ५ औंस, इन सब को मिला कर ऊपर कही हुई रीति के अनुसार पिचकारी लगाना चाहिये। २१-कारबोलिक एसिड २० ग्रेन तथा पानी ५ औंस, इन को मिलाकर दिन में चार वा पांच वार पिचकारी लगाना चाहिये। २२-पुटासीपरमेंगनस २ ग्रेन को ४ औंस पानी में मिला कर दिन में तीन पिचकारी लगाना चाहिये। २३-नींबू के पत्ते, इमली के पत्ते, नींब के पत्ते और मेंहदी के पत्ते, प्रत्येक दो दो तोले, इन सब को आध सेर पानी में जुटा कर दिन में तीन बार उस पानी की पिचकारी लगाना चाहिये। २४-मोरथोथा ३ रत्ती, रसोत मासा, अफीम १ मासा, सफेदा काशगरी १ मासा, गेरू ६ मासे, बबूल का गोंद १ तोला, कलमी शोरा ३ रत्ती तथा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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