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________________ चतुर्थ अध्याय । ४५३ आना, ज्वर के बाह्य कारण वे कहलाते हैं जो कि सब आगन्तुक ज्वरों (जिन के विषयमें आगे लिखा जावेगा) के कारण हैं, इन के सिवाय हवा में उड़ते हुए जो चेपी ज्वरों के परमाणु हैं उनका भी इन्हीं कारणों में समावेश होता है अर्थात् वे भी ज्वर के बाह्य कारण माने जाते हैं। देशी वैद्यकशास्त्र के अनुसार ज्वरों के भेद । देशी वैद्यकशास्त्र के अनुसार ज्वरों के केवल दश भेद हैं अर्थात् दश प्रकार का ज्वर माना जाता है, जिन के नाम ये हैं वातज्वर, पित्तज्वर, कफवर, वातपित्त. ज्वर, वातकफज्वर, कफपित्तज्वर, सन्निपातज्वर, आगन्तुक ज्वर, विषमज्वर और जीर्णज्वर । अंग्रेजी वैद्यकशास्त्र के अनुसार ज्वरों के भेद । अंग्रेज़ी वैद्यकशास्त्र के अनुसार ज्वरों के केवल चार भेद हैं अर्थात् अंग्रेज़ी वैद्यक शास्त्र में मुख्यतया चार ही प्रकार का ज्वर माना गया है, जिन के नाम ये हैं-जारीज्वर, आन्तरज्वर, रिमिटेंट ज्वर और फूट कर निकलनेवाला ज्वर । इन में से प्रथम जारी ज्वर के चार भेद हैं-सादातप, टाइफस, टाईफोइड और फिर २ कर आनेवाला । दूसरे आन्तरज्वर के भी चार भेद हैं-ठंढ देकर (शीत लग कर ) नित्य आनेवाला, एकान्तर, तेजरा और चौथिया । तीसरे रिमिटेंट ज्वर का कोई भी भेद नहीं है, इसे दूसरे नाम से रिमिटेंट फीवर भी कहते हैं। चौथे फूट कर निकलने वाले ज्वर के बारह भेद हैं-शीतला, ओरी, अचपड़ा (आकड़ा काकड़ा), लाल बुखार, रंगीला बुखार रक्तवायु (विसर्प ), हैज़ा वा मरी का तप, इनप्लुएना, मोती झरा, पानी झरा, थोथी झरा और काला मूंधोरा। इन सब ज्वरों का वर्णन क्रमानुसार आगे किया जावेगा। ज्वर के सामान्य कारण । अयोग्य आहार और अयोग्य विहार ही ज्वर के सामान्य कारण हैं, क्योंकि १-इस कारण को अंग्रेजी वैद्यक में ज्वर के कारण के प्रकरण में यद्यपि नहीं गिना है परन्तु देशी वैद्यकशास्त्र में इस को ज्वर के कारणों में माना ही है, इस लिये ज्वर के आन्तर कारण का दूसरा भेद यही है ॥ २-देशी वैद्यकशास्त्र के अनुसार ये चारों भेद विषम ज्वर के हो सकते हैं ॥ ३-देशी वैद्यकशास्त्र के अनुसार यह (रिमिटेंट ज्वर) विषमज्वर का एक भेद सन्ततज्वर नामक हो सकता है ॥ ४-अंग्रेजी भाषा में ज्वर को फीवर कहते हैं ॥ ५-देशी वैद्यकशास्त्र में ममूरिका को क्षुद्र रोग तथा मूंधोरा नाम से लिखा है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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