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________________ चतुर्थ अध्याय । ४०५ है, इत्यादि बातें पूर्णतया नाड़ी के देखने से कभी नहीं मालूम पड़ सकती हैं, हां वेशक अनुभवी चिकित्सक रोगी की नाड़ी, चेहरा, आंख चेष्टा और बात चीत आदि से रोगी की बहुत कुछ हकीकत को जान सकता है तथा रोगी की विशेष हकीकत को सुने विना भी बाहरी जांच से रोगी का मुख्य स्वरूप कह सकता है, परन्तु इस से यह नहीं समझ लेना चाहिये कि वैद्य ने सब परीक्षा नाड़ी के द्वारा ही कर ली है और हमेशा नाड़ीपरीक्षा सञ्ची ही होती है, जो लोग नाड़ीपरीक्षा पर हद्दसे ज्यादा विश्वास रखकर ठगाते हैं उन से हमारा इतना ही कहना है कि, केवल ( एकमात्र) नाड़ीपरीक्षा से रोग का कभी आजतक न तो निश्चय हुआ न होगा और न हो सकता है, इस लिये विद्वान् वैद्य वा डाक्टरपर पूर्ण विश्वास रखकर उनकी यथार्थ आज्ञा को मानना चाहिये। ___ यह भी स्मरण रहे कि-बहुत से वैद्य और डाक्टर लोग रोगी की प्रकृति पर बहुत ही थोड़ा खयाल करते हैं किन्तु रोग के बाहरी चिह्न और हकीकत पर विशेष आधार रख कर इलाज किया करते हैं, परन्तु इसतरह रोगी का अच्छा होना कठिन है, क्योंकि कोई रोगी ऐसे होते हैं कि वे अपने शरीर की पूरी हकीकत खुद नहीं जानते और इसी लिये वे उसे बतला भी नहीं सकते हैं, फिर देखी ! अचेतना और सन्निपात जैसे महा भयंकर रोगों में, एवं उन्माद, मूर्छा और मृगी आदि रोगों में रोगी के कहेहुए लक्षणों से रोग की पूरी हकीकत कभी नहीं मालूम हो सकती है, उस समय में नाड़ीपरीक्षा पर विशेष आधार रखना पड़ता है तथा रोगी की प्रकृतिपर इलाज का बहुत आश्रय (आसरा) लेना होता है और प्रकृति की परीक्षा भी नाड़ी आदि के द्वारा अनेक प्रकार से होती है, डाक्टर लोग जो अँगली लेकर हृदय का धड़का देखते हैं वह भी नाड़ीपरीक्षा ही है क्योंकि हाथ के पहुंचे पर नाड़ी का जो ठबका है वह हृदय का धड़का और खून के प्रवाह का आखिरी धड़का है, शरीर में जिस २ जगह धोरी नस में खून उछलता है वहां २ अंगुलि के रखने से नाड़ीपरीक्षा हो सकती है, परन्तु जब खून के फिरने में कुछ भी फर्क होता है तब पहिली धोरी नसों के अन्त भाग को खून का पोषण मिलना बंद होता है, अन्य सब नाड़ियों को छोड़ कर हाथ के पहुंचे की नाड़ी की ही जो परीक्षा की जाती है उस का हेतु यह है कि-हाथ की जो नाड़ी है वह धोरी नस का किनारा है, इस लिये पहुँचे पर की नाड़ी का धबकारा अंगुलि को स्पष्ट मालूम देता है, इस लिये ही हमारे पूर्वाचार्यों ने नाड़ीपरीक्षा करने के लिये पहुँचे पर की नाड़ी को ठीक २ जगह ठहराई है, पैरों में गिरिये के पास भी यही नाड़ी देखी जाती है, क्योंकि वहां भी धोरी नस का किनारा है, (प्रश्न ) स्त्री की नाड़ी बायें हाथ की देखते हैं और पुरुष की नाड़ी दहिने हाथ की देखते हैं, इस का क्या कारण है ? (उत्तर) धर्मशास्त्र तथा निमित्तादि शास्त्रों में पुरुष का दहिना अंग और स्त्री का बांयां अंग मुख्य माना गया है, अर्थात् निमित्तशास्त्र सामुद्रिक में उत्तम पुरुष और स्त्री के जो २ लक्षण लिखे हैं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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