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________________ चतुर्थ अध्याय । ४०३ जिस से नाड़ीपरीक्षा के विषय में अनेक अद्भुत और असम्भव बातें प्रायः सुनी जाती हैं, जैसे-हाथ में कच्चे सूत का तागा बांधकर सब हाल कह देना इत्यादि, ऐसी बातों में सत्य किञ्चिन्मान भी नहीं होता है किन्तु केवल झूठ ही होता है, इस लिये सुजनों को उचित है कि धूर्ती के बनावटी जाल से बचकर नाड़ीपरीक्षा के यथार्थ तत्त्व को समझें। इस ग्रन्थ में जो नाड़ीपरीक्षा का विवरण किया है वह नाडीज्ञान के सच्चे अभिलाषियों और अभ्यासियों के लिये बहुत उपयोगी है, क्योंकि इस ग्रन्थ में किये हुए विवरण के अनुसार कुछ समयतक अभ्यास और अनुभव होने से नाड़ीपरीक्षा के सूक्ष्म विचार और रोगपरीक्षा की बहुत सी आवश्यक कुंचियां भी मिल सकती हैं, इस लिये विद्वानों की लिखीहुई नाड़ीपरीक्षा अथवा उन्हीं के सिद्धान्त के अनुकूल इस ग्रन्थ में वर्णित नाड़ीपरीक्षा का ही अभ्यास करना चाहिये किन्तु नाड़ीपरीक्षा के विषय में जो धूर्ती ने अत्यन्त झूठी बातें प्रसिद्ध कर रक्खी हैं उनपर बिलकुल ध्यान नहीं देना चाहिये, देखो! धूतों ने नाड़ीपरीक्षा के विषय में कैसी २ मिथ्या बातें प्रसिद्ध कर रक्खी हैं कि रोगी ने छः महीने पहिले अमुक साग खाया था, कल अमुक ने ये २ चीजें खाई थीं, इत्यादि, कहिये ये सब गप्पें नहीं तो और क्या हैं ? __ बहुत से हकीमसाहबों ने और वैद्यों ने नाड़ी की हद्दसे ज्यादा महिमा बढ़ा रक्खी है तथा असम्भव और घड़ीहुई गप्पों को लोगों के दिलों में जमा दी हैं, ऐसे भोले लोगों का जब कभी डाक्टरी चिकित्साके द्वारा रोग का मिटना कठिन होता है अथवा देरी लगती है तब वे मूर्ख लोग डाक्टरों की बेवकूफी को प्रकट करने लगते हैं और कहते हैं कि-"डाक्टरों को नाडीपरीक्षा का ज्ञान नहीं है" पीछे वे लोग देशी वैद्य के पास जाकर कहते हैं कि-"हमारी नाड़ी को देखो, हमारे शरीर में क्या रोग है, हम वैद्य उसी को समझते हैं कि-जो नाड़ी देखकर रोग को बतला देवे" ऐसी दशा में जो सत्यवादी वैद्य होता है वह तो सत्य २ कह देता है कि-"भाइयो ! नाड़ीपरीक्षा से तुम्हारी प्रकृति की कुछ बातों को तो हम समझ लेंगे परन्तु तुम अपनी अव्वल से आखिरतक जो २ हकीक़त बीती है और जो हकीक़त है वह सब साफ २ कह दो कि किस कारण से रोग हुआ है, रोग कितने दिनों का हुआ है, क्या २ दवा ली थी और क्या २ पथ्य खाया पिया था, क्योंकि तुम्हारा यह सब हाल विदित होने से हम रोग की परीक्षा कर सकेंगे” यद्यपि विद्वान् तथा चतुर वैद्य नाड़ी को देखकर रोगी के शरीर की स्थिति का बहुत कुछ अनुमान तो स्वयं कर सकते हैं तथा वह अनुमान प्रायः सच्चा भी निकलता है तथापि वे (विद्वान् वैद्य) नाड़ीपरीक्षा पर अतिशय श्रद्धा रखनेवाले अज्ञान लोगों के सामने अपनी परीक्षा देकर आपनी कीमत नहीं करना १-अर्थात् केवल नाड़ी देखकर सब वृत्तान्त कह कर ॥ २-कीमत अर्थात् बेकदरी ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034525
Book TitleJain Sampraday Shiksha Athva Gruhasthashram Sheelsaubhagya Bhushanmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreepalchandra Yati
PublisherPandurang Jawaji
Publication Year1931
Total Pages754
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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